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अध्याय ग्यारहवां ।
आनेके लिये सुचना की। इसी कारण अहमदाबादसे सेठनी आसोज सुदी १२ को शीतलप्रसादनी और धर्मचंदजी हरजीवनके साथ रवाना हुए। इन्हीं दिनों रानकोटमें गुजराती साहित्य परिषद थी।
___ अबके परिषदके कार्यकर्ताओंने प्रगट किया राजकोटमें गुजराती था कि प्राचीन ग्रंथों व शिलालेखोंकी - साहित्य परिषद प्रदर्शनी भी कि जायगी । सेठजीको भी
निमंत्रण आया था। आपने शीतलप्रसादनीसे राय करके अपनी चौपाटीके चैत्यालयमें विराजित प्राचीन लिखित गोमट्टसार, आदिपुराण, अष्टसहस्री, द्विसंधानकाव्य, उत्तरपुराण आदि २५-३० ग्रंथोंको और कुछ माड़वाड़ी दि० जैन मंदिरसे लेकर राजकोट रवाना कर दिये थे । इनमें संवत् १५०० व १४०० तककी लिपिके ग्रंथ थे। तथा भावनगरके दिगम्बर जैन भंडारसे भी सेठनीने ग्रंथ भिनवाए थे । वहांसे एक ग्रंथ अनुमान १३०० संवत्का लिखा आया था । सेठजी ताः २७ अक्टूबर १९०९ को सबेरे रानकोट पहुंचे । जिस सेकन्ड क्लासमें सेठनी गए थे उसी में इस परिषदके प्रमुख दीवान बहादुर अम्बालाल साकरलाल एम. ए. एलएल. बी. आदि भी थे । राजकोट स्टेशन पर स्वागत कर्ताओंने सेठजीका भी बहुत सन्मान किया और एक अच्छे मकान में ठहराया। प्रदर्शनीका समय १० बजे तक ही था। इससे सबेरे ही देखनेको प्रदर्शिनीमें आए । एक बड़े कमरेमें चारों ओर शीशेके कपाटोंमें व टेबुलोंमें ग्रन्थ व शिलालेख देखनेमें आए । हरएकका अंतिम पत्रा खुला था ताकि प्रशस्तिको पढ़कर दर्शक उसके कर्ता व लिपिके .
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