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अध्याय बारहवां प्रमुखने १०००) पाठशाला व ७००) बोर्डिगके फंडमें दिये व १ वर्षतक दो छात्रोंके लिये मासिक वृत्तिये नियत की । सेठजी मकानको देखकर बहुत प्रसन्न हए क्योंकि इनको मकान बनवानेका बहुत शौक था तथा इस फंदमें एक अच्छे इंजीनियरसे भी अच्छी सलाह दे सकते थे। सेठजीको बम्बई लौटकर यह सुनकर और भी हर्ष हुआ कि
बड़वाहा जिला नीमाड़में भी श्रीमती भागाबड़वाहामें बोर्डिंग । बाईने १००००) दानकर अपने पतिके
नामसे "प्यारचन्दशा दिगम्बर जन बोर्डिङ्ग " रायबहादुर सेट तिलोकचन्द कल्याणमललके हाथसे मिती फाल्गुण सुदी २ ता० २६ फवरी १४को खुलवा दिया । __बम्बईमें सेठ माणिकचंदजीकी भावज सेठ मोतीचन्द हीरा
राचंदकी धर्मपत्नी श्रीमती रूपाबाईका शरीर धर्मात्मा रूपाबाईजीका वृद्धावस्थाके कारण अशक्त हो गया । परलोक। खाना पीना कम हो गया। अवस्था भी
इस समय ५८ वर्षकी थी। आपने मिती फाल्गुण सुदी ३ सं० १९७० के दिन अपने होशमें णमोकारमंत्रका जाप जपते व श्री चंदाप्रभु स्वामीका ध्यान करते हुए अपने इस नाशवन्त देहको छोड़कर स्वर्ग में विहार किया। सेठजीके कुटुम्बमें माता रूपाबाईके समान धर्मबुद्धि, वात्सल्यगुणधारी, वैयावृत्यमें सावधान, दान धर्म तप करनेमें लवलीन दूसरी स्त्री नहीं हुई । २२ वर्षकी उम्र में ही आपको वैधव्य प्राप्त हुआ तबसे बाईजीने अपने धमको परम श्रद्धाके साथ आजन्म निवाहा ।
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