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अध्याय चौथा ।
अध्याय चौथा।
सेठ माणिकचंदकी वृद्धि ।
साह हीराचंद अब पुत्रोंकी सम्हाल व उनकी साधारण शिक्षा
पर ध्यान रखने लगे। मोतीचंदको दो वर्ष १८५७के गदरका तक देशी निशालमें पढ़ाकर फिर एक गुजसमय। राती स्कूलमें पड़ने भेज दिया, इसी तरह
पानाचंदको भी दो वर्ष तक देशी निशालमें पढ़ाकर गुजराती स्कूलमें भेना । इतने में माणिकचंद ६ वर्षके हुए। इसको मंदिरजीमें देर तक बैठनेका शौक था । जो कोई शास्त्र पढ़ता यह बिना समझे भी सुना करता था । संवत् १९१४ या सन् १८५७ बड़ा विकट वर्ष था। सूरतमें लश्करका आना जाना बहुत रहता था। यद्यपि वहाँ कोई हुल्लड नहीं था। पर उत्तर हिंदुतानमें इंग्रेजोंसे देशी फौन बिगड़ उठी थी जिससे देहली, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों में बड़ा भारी गदर हो गया था। प्रजाजन लूटे जाते थे। लोग अपने २ मकान छोड़कर परदेश भाग रहे थे। इतिहासमें यह वर्ष बहुत प्रसिद्ध है। इस समय ईष्ट इंडिया कम्पनीकी सत्ता भारतमें थी। गदर शांत होनेके पश्चात् सन् १८५८की १ नवम्बरको प्रसिद्ध रानी कीन विकटोरियाने मारतकी राज्यसत्ता कम्पनीके हाथसे अपने हाथमें ली और भारतके धर्मकर्ममें समभाव रखने व हस्तक्षेप न करने आदिकी घोषणा प्रसिद्ध की।
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