SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ । अध्याय सातवाँ । कभी २ सेठजीको अपने पुत्र न होनेका ख्याल आजाता था। यद्यपि मगनमतीके जन्मके पीछे एक पुत्रका सेठजीको पुत्र की जन्म हुआ पर वह ९ मास पीछे ही मर आशा। गया अब फिर चतुरमतीको गर्भ रहा था और सेठनीकी आशाके अनुसार इस वार भी पुत्रका जन्म हुआ। सेठजीने कोइ खास उत्सव नहीं किया । वह पुत्र धीरे २ बढ़ने लगा। चंदावाडीको स्थापित करके बम्बई आने पर परस्पर माइयोंमें सम्मति हुई कि अपने सर्व कुटुम्बको रत्नाकर पैलेसकी एक साथ उत्तम वायुके स्थान पर रहने स्थापनामें करीब योग्य एक मनोहर बंगला ऐसा निर्मापण १॥ लाखका करना चाहिये जिसमें एक चैत्यालय भी खच । स्थापित किया जाय जिससे धर्म साधनमें किसीको कभी अंतराय न पड़े इसमें एक लाख डेढ़ लाख रुपये के अनुमान खर्च करना विचार किया गया । सेठ माणिकचंदने शास्त्रों में स्वर्गीय महलों व चक्रवर्ती राना आदिके महलोंका वर्णन पढ़ा था । चित्तमें उमंग हुई कि इन्द्र महल समान महल समुद्र तट पर बहुत ही रमणीक पाषाण और ईटका बनवाया जाय । बम्बई में चौपाटी समुद्रके तट पर एक ऐसा स्थान है जहां पर शहरके सर्व ही भले नर नारी शामके वक्त सैर करने जाया करते हैं । सेठजीने ऐसी जमीन इसके लिये तनवीन की जिसके एक ओर बी० बी० सी० आई रेलवे जाती है और दूसरी ओर समुद्र तट परकी बड़ी सड़क है इस ज़मीनको २४०००) रु० में खरीदा Jain Education International For Personal & Private Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy