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लक्ष्मीका उपयोग |
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[ २३९ ओर इस विस्तार पूर्ण जगह में ऐसा महल बनानेका नक्शा तय्यार किया कि जिसमें सड़ककी तरफ आगेको बागीचा हो, भीतर गाड़ी घोड़ा बांधने व सहीसोंके रहने की जगह हो । आगेको नीचे और ऊपर बड़े २ हॉल हों जिनमें पांच पांच सौ आदमी बैठ सके । हॉलके आगे ऊपर व नीचे सुन्दर बरामदा हो । चारों भाइयोंक आराम के लिये अलग २ कमरे हों व और भी पुत्रों के लिये कमरे हों व कोई बाहर के महमान आवें उनके भी ठहरनेका स्थान हो । हरएक कमरे में स्नान घर, पानी रखनेकी जगह हो, रोशनी व हवा खूब आ सके तथा इसीसे लगा हुआ एक हॉलमें चैत्यालय हो जिसके आगे भी १५० आदमीके बैठनेकी जगह हो और इस चैत्यालय के ऊपर कोई मकान न हो तीसरे खनमें भी कमरे हों और स ऊपर एक ऊंची टावर (Tower ) हो जो दूरसे दीखे और जिमपर खड़े होकर दूर तक समुद्र और नगरका दृश्य दिखलाई पड़े | रसोईका स्थान एक कोने पर रक्खा कि किसी तरह धुआं किसी बैठने व सोनेके कमरे में न जा सके । मलविसर्जनका स्थान और भी दूर रखखा गया कि उसकी दुर्गंध कहीं भी नहीं आ सके। ऐसे महल बनानेका नक्शा बनवाया और सर्व भाइयोंने उसे पसन्द किया । इस समय प्रेमचन्द भी १४ वर्षके हो गए थे स्कूलमें बहुत मन लगाकर इंग्रेजी पढ़ते थे। मैट्रिकुलेशन में एक ही वर्ष पहुंचने को भी रहा था। प्रेमचन्दको नक्शा पसन्द कराया । रूपाबाई माता भी बड़ी चतुर थी उसे भी दिखलाया । सबकी राय पड़ने पर सेठ माणिकचंदजीने एक बहुत चतुर मिस्त्रीके सुपुर्द यह काम कर दिया । आप नित्य प्रति घंटा दो घंटा देख चाल रखते थे ।
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