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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५४१ जैयपुरवाले सेठ गुलाबचंदनी ढहाका स्टेशनपर अच्छी तरह स्वागत किया गया । पहली बैठकमें सेठ माणिकचंदजीने स्वागत कमेटीके प्रमुखकी हैसियतसे अपना भाषण पढ़ा तथा धार्मिक, औद्योगिक, स्त्रीशिक्षा, बालविवाह, वेश्यानृत्य निषेध, श्री सम्मेदशिखर, तीर्थोके झगड़े, ऐक्यता आदि विषयोंपर विवेचन किया।
ऐक्यताके सम्बन्धमें आपने कहा " मैं सर्व जैन प्रतिनिधियोंसे प्रार्थना करता हूं कि तीर्थोके सम्बन्धमें जो किसी तरहका खराब भाव हो उसको निकाल देवे और परस्परके झगड़ोंको मिटानेके लिये एक सम्मिलित कमेटी बना लेवें। इन्हीं तीर्थोके लिये कर्मबंध करानेवाले झगड़ोंके कारण हम लोग परस्पर मेल नहीं रख सकते, और इस एकताके अभाव में जैसे सिया और सुन्नी दो भिन्न २ संप्रदायके लोग एक होकर शिक्षा और सुरीतिका प्रचार करते हैं वैसे हम नहीं कर सक्ते।"
धार्मिक शिक्षापर कहते हुए आपने कहा कि “ धार्मिक शिक्षाक लिये शिक्षकोंकी प्राप्तिके लिये संस्कृत पाठशालाएँ भी खोलनी चाहिए, जिनमें ऐसी पद्धतिकी शिक्षा होनी चाहिये जो हमारे नए जमानेके लोगोंको समझानेमें अत्यन्त उपयोगी होवे ।" गुलाबचंदजी ढहाने हिंदीमें भाषण दिया । कुल प्रस्ताव १३ पास हुए जिनमें खास ये थे
१. शोलापुरके सेठ हीराचंद नेमचंद द्वारा अणाप्पा फड्याप्पा चौगले बी० ए० एलएल० बी० को सोनेका एक तमगा इसलिये दिया जाय कि इन्होंने सर्वार्थसिद्धि संस्कृत धार्मिक ग्रन्थकी
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