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________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७५९ वीते थे यह ६४ जीव वास्तव में सेठ माणिकचन्दजी ऐसे धर्मात्मा और परोपकारी तथा जगत्के हितमें उद्यमी ही लेसकते हैं। इससे यह भी अनुमान किया जासकता है कि सेठजीका आत्मा इस ६४ जीवों में से एक हो और अब वह विदेह क्षेत्रमें उत्तम मनुष्यकी बनऋषभनाराच संहनन ( वज्रके समान दृढ़ वेस्टनके जाल, कीले व हड्डीवाली ) रूपी देहमें विराजमान हो बालपनेकी क्रीडा कर रही हो । सिवाय उत्तम मनुष्य या देव पर्यायके और किसी भी पर्यायमें सेठनी ऐसे महान् शुभ भाव धारक आत्माका गमन नहीं हो सकता। सेठजीके सर्व चैतन्यपनेकी चेष्टासे रहित मृतक शरीरको देख देखकर चौपाटी बंगलेके नरनारियोंको शोकने घेर लिया और रात्रिभर सबने महाशोक रुदन व उदासीमें विताई। सेठजीकी पत्नीजीवनचन्दकी माता सिर पटक व छाती कूटकर समय समय पर रो उठती थी जिसकी आर्तनादको सुनकर कठोर मन भी पिघल जाता था । मगनबाईजी रात्रिको ही तारदेव श्राविकाश्रमसे आई और जिस अपने पूज्य पिताकी शरणको अपना श्वसुर गृहका ममत्त्व त्यागकर आलम्बन कर रक्खा था उस शरणका इस तरह अकस्मात् निराकरण देख कर महान् आर्त्तध्यानमें मग्न हो गई। वार वार पिताके उस अनबोल कलेवरको, जिसने घंटे पहले अच्छी तरह बर्तालाप की थी अब चेतनता रहित देखकर मगनबाईजीका चित्त परम अशरण मावको प्राप्त होगया। धर्मज्ञानके कारण इस बाईको मन कभी आतध्यानमें व कभी वैराग्यमई धर्मध्यानमें कल्लोलें मार रहा था। सेठ नवलचंदको भी अपने जाति प्रसिद्ध नामांकित भाई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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