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अध्याय तेरहवां ।
जैनन दीन विलोकिकें करो सुनाथ हे नाथ ।
यह सुबुद्धि अब दीजिये करे निज पर उद्धार ॥१३॥ जैन सभा कालिकातनी सुनहु बीनती ऐम । करों कृपा इम जाति में स्वजनन प्रति यह वीनती करहुं हृदय घर धीर ।
जासो वा प्रेम ॥ १४ ॥
अथिर चरित संसार लखि घर संतोष चितवीर ॥१५ ॥
बनारसीदास जैन, मंत्री, जैन सभा, कालका |
सुप्रसिद्ध धार्मिक सिरोमणि श्रीमान् माणिकचन्दजीकु अक्रस्मात् स्वर्गवास हुआ कर्के वृत्त पत्र से मालुन हुवा - इस्से ऐसा धार्मिक सिरोरत्नका वियोग हूये सो हं लोकके सहस साधु लोककुं भी व्याकुलता संपादक है तुम लोककु कहना क्या है, तथापि आप लोक व्याकुलतासे निवृत्त होकर सेष्टिनीके सहस परोपकार कार्य में व्यापृत होकर ऐहिकामुष्मिक सुखप्रद धर्म कार्य में निरत होना चाहिये ।
म० चारूकीर्ति पंडिताचार्य, श्रवण बेलगुल ( सही कर्णाटकी भाषा में )
श्रीयुत मान्यवर सेठ नवलचंदजी हीराचंदजी, जुहारू | दानवीर जैन कुलभूषण सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० के अचानक स्वर्गवास से आज हमें अतिशय दुःख है । सेठजी के स्वर्गवासके कारण जैन समाजको एक सच्चे मित्र और रक्षककी असह्य हानि उठानी पड़ी है । श्रीमान् सेठजी न केवल आपके ही बंधु थे किन्तु वे लक्ष लक्ष जैन धर्मियोंके भाई थे और उन एकके मरणसे
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