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समाजकी सी सेवा । [३४७ इसी संवत् १९५८ में सेठ पानाचन्दनी अपनी पत्नी रुक्मणी
बाई और दो कन्याएँ व छोटे पुत्रके साथ सेठ पानाचन्दकी श्री शिखरजीकी यात्रार्थ गए । साथमें सेठ शिखरजीकी प्रेमचन्द मोतीचन्द जौहरी और सेठ पानायात्रा। चन्दके साले मोतीलाल और झवेरेलाल भी
थे। बड़े आनन्दसे यात्रा की, पर जब श्री पार्श्वनाथनीकी टोकपर पहुंचे तब वहां यह मालूम किया कि राय बद्रीदामनी (श्वे०) कलकत्तेवाले यहां प्रतिमानी बिराजमान करना चाहते हैं तथा आमंत्रण पत्रिकाएँ निकाली हैं। आपने चिठ्ठीमें सब समाचार माणिकचन्दजीको लिखे और शिखरजीसे शीघ्र ही बम्बई लौट आए। ____ बम्बईमें खबर होते ही श्रीमान् लॉर्ड कर्जनको तार दिया गया कि श्री पार्श्वनाथजीकी टोंकार जैसे सदासे चरण पादुकाओंका स्थापन है वैसे ही रहे-प्रतिमा विराजमान न की जावें । तथा जब पानाचन्दनी बम्बई आये तब वहांकी तय्यारीका हाल कहा कि राय बद्रीदास माह सुदी १३को चरणोंके स्थानपर प्रतिमा बिराजमान करनेवाले हैं। और सेठ माणिकचन्दको जोर दिया कि वे स्वयं जावें और इस बातको रुकवावें । सेठ माणिकचन्द तीर्थरक्षामें पूर्ण लौलीन थे । जबसे महासभाने यह काम बम्बई सभाके आधीन किया तबसे ही रात्रिदिन शिखरजीकी सुव्यवस्थाके ही प्रबन्धमें थे। आपके उद्योगसे सीढ़ी तोड़नेके हमेंमें श्वेताम्बरियोंपर ५०००) की दीवानीमें नालिश की गई थी जिसके लिये समाजने ६०००) के करीब चन्दा एकत्र किया था सो खर्च करके रु० १८४५) की
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