________________
३४८]
अध्याय नवां ।
डिगरी श्वे० पर जज साहबने दी थी। एक चिन्तासे मुक्त हुए ही थे कि दूसरी यह फिकर हुई। आप उसी दिन चलनेको तय्यार हुए। आपके साथ सेठ
___पानाचंद रामचंद शोलापुर, सेठ नाथारंगजी शिखरजीकी रक्षार्थ गांधी आकलून, लल्लभाई प्रेमानंद बोरसद, सेठ माणिकचंदका बालचंद व हीराचंद आदि भाई भी गए । दौरा और उप- आप नागपुर होते गए और वहांकी पाठशासर्ग निवारण। लाके लिये ६५००) का चंदा कराया । वहांकी
फूट मेटी व सेठ गुलाबमात्र आदि तीन भाई शिखरजीके लिये साथ हुए। शिवरजी पहुंचे। गीरीडी व आराके भाई आए। वहां लाला सुलतानसिंह दिहलीवाले मिले । उन्होंने चरण उखाड़नेकी बात कही व रुकवाने में पूर्ण मदद देनेका बचन ही न दिया, किन्तु अपने संघसे १०००) जमा कराके दे दिया । कोशिश चल ही रही थी कि लार्ड कर्जनने रांचीके डिप्टी कमिश्नरको जरूरी प्रबन्धके लिये हुक्म दिया । वहांसे चरण उखाड़नेकी मनाईका हुक्म आ गया। उस समय सेठनीने बीसपंठी कोटीके हिसाबादिको संतोषजनक न पाकर वे आरा गए। वहांके पंचोंको समझाया। उन्होंने चैत्र सुदी १ तक सब हिसाव प्रसिद्ध करने व १ साल तक अच्छी कार्रवाई करनेका बचन दिया। सेठ माणिचंदजी फिर बम्बई आ गए। यहां आने घर खबर आई कि प्रतिष्ठा होनेकी तारीख पर २०० कान्सटेबल, दारोगा व सुप०को भेजा गया जिससे मूर्तिकी प्रतिष्ठा न हो सकी। चरण सदाकी भांति विराजित रहे । सर्कारके इस न्यायसे सेठजी व सर्व दिगम्बर जैन समाजको सन्तोष हुआ । इसी वर्ष सेठ माणिकचंदने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org