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समाजकी सच्ची सेवा। [३४९ पंजीकी बाड़ी नामके स्थानको ३२०००) में खरीद किया, पर यह स्थान पीछेसे धर्मशालाके योग्य न जान कर यों ही रहने दिया।
श्रावक मंडली शोलापुरने सेठ माणिकचंदजीके धार्मिक कृत्यों पर मुग्ध होकर ता० ६ अक्टूबर १९०१ को एक मानपत्र अर्पण किया जिसकी नकल इस भांति है
मानपत्रजवेरी शेठ माणेकचंद पानाचंद जोग्य प्यारा धर्मबंधु, ___जत अमे नीचे सही करनारा सोलापुरना दिगंबर जैन भावको आप साहेबनी स्वधर्म विषे अत्यंत प्रीति देखीने आ मानपत्र आपने आपवानी रजा लईये छीये ते कृपा करी स्वीकारशो. ____ आपणा जैन बंधुओ स्वधर्म संबंधी तेमज राजकाज संबंधी केवलणीमां घणा पछात पड़ेला जोईने तेमने धर्म संबंधी अने राजकाज, वैदकीय, शिल्पशास्त्र वगेरेनी ऊंचा प्रकारनी केळवणी मेळववानुं अतिशय जरूरनुं साधन जे “बोर्डिंग हाऊस" ते मुंबई जेवां म्होटां शहेरमा पोतानां पोणो लाख रुपिया आशरे खर्च करीने आपे बांधी आप्यु तेथी आपनी धर्मकृत्योमां खरी उदारता प्रगट थाय छे.
श्री सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर ज्यां बीस तीर्थकर अने असंख्यात मुनी मोक्ष पाम्यां छे त्यां जात्राळुना सगवड माटे पगथियां करवानुं काम चाल्युं हतुं. ते आपणा श्वेतांवर भाईओए वगर कारणे उखाडी नांखीने क्लेश वधार्यो; ते काममां आपे आगेवान यई महेनत लईने सरकारनी अदालतमां जय मेळव्यो. तेथी आपणे ठेकाणे स्वधर्म वात्सल्य गुण तारीफ करवा लायक छ एम स्पष्ट देखाय छे.
जयधवल, महाधवल जेवां प्राचीन अन्योना जीर्णोद्धार करवामां
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