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________________ ३५० ] अध्याय नवां। पण आप साहेब आगेवान थई सर्वे भाइओनी मददथी काम चलाव्युं छे तेथी ज्ञानवृद्धि माटे आपनी अत्यंत उत्कंठा देखाई आवे छे. __ श्री गंधहस्तमहाभाष्य नामना अत्यंत उपयोगी परंतु अदृष्ट थयेला धर्म पुस्तकनी तपास लगावी आपनारने पांचसो रुपियानु इनाम आपे जाहेर कीधुं तेथी आपना विषे प्रवचनवात्सल्य गुण रहेलो जणाई आवे छे. तेमज आपणा केटलांक गरीब अने निराश्रीत जैन बंधुओने विद्याभ्यास करवा माटे योग्य पारितोषिक अने स्कालर्शिपो आपीने उत्तेजन आपो छो, तेथी जैनधर्मना यथार्थ दाननो मार्ग आप बतावी आपो छो. एवीज रीते स्वधर्म संबंधी हरएक काममां आप पोताना तन, मन, धनथो महेनत करीने अमारा जेवा धर्मबंधुओने पण साथे लेई 'पुण्यनो लाभ आपो छो. एवां तमारा सद्गुणो जोईने अमने घणो संतोष थयो छे. ते संतोषना बे बोल आ मानपत्रमा टांकीने आपने भेट करी छे, ते आप मानपूर्वक अंगिकार करशो एवी अमे उमेद राखिये छीये. शोलापुर, आपना, तारीख ६ अक्टोबर सन् १९०१ सद्गुण चाहनारा । आकलूनकी बिम्बप्रतिष्ठाके समय सरस्वती भंडारके मंत्री सेठ प्रेमचंद मोतीचन्दको किया गया था। सेठ प्रेमचंदकी स- जबसे आपने बहुत कुछ उद्योग किया । रस्वती भक्ति। आपने मई १९०१ के जैनमित्रमें एक प्रभा वशाली लेख प्रकाशित करके शास्त्रोंकी रक्षाका उपाय बताया था। इस लेखमें आपके अंतरंग मावको झलकानेवाले कुछ वाक्य यह थे-"हमारे भाइयोंके लक्षों करोडोंका व्यापार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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