SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१३१ vM युवावस्था और गृहस्थाश्रम । अध्याय पांचवां। MAMALA युवावस्था और गृहस्थाश्रम । एक दिन सेठ मोतीचन्द अपने एक मित्रके साथ शामके वक्त बम्बईमें समुद्रके तट पर हवा खाते हुए टहल मोतीचंदकी ब्रह्म- रहे थे । मनरंजायमानकी बातें होते होते चर्यमें दृढ़ता। मित्रने कहा-“सेठजी! आपकी अर्द्धाङ्गिणी __आपके साथ प्रेममाव रखती है कि नहीं ? मुझे तो पुण्योदयसे ऐसी स्त्रीका समागम हुआ है जिससे मुझे बहुतही आराम है। वह बहुत ही सौम्य और घरके कामकाजमें कुशल है।" सेठ मोतीचंद अपने ही समान वयस्क मित्रको देखकर चित्तमें लज्जायमान हुए और सोचने लगे कि हमारा तो अभी विवाह ही नहीं हुआ है, हम क्या जवाब देवे ? फिर भी अपना मन थांम अपने पूज्य पिताकी शिक्षाको याद कर बोले-" प्रिय मित्र ! मुझे तो अभी तक विवाहकी परवाह नहीं है। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि विवाहके बन्धनमें पड़नेके पहले मनुष्यको धनपात्र, व्यवसाई, दृढ़शरीर, तथा पक्क वीर्य होना चाहिये । सो भाई, मेरे पुण्यके उदयसे यह सब बातें मेरे और मेरे भाइयोंके उद्यमसे मुझे आकर प्राप्त हुई हैं। अब मेरी उम्र २४ वर्षसे अधिक है। अबतक तो मुझे इसका ख्याल न था पर आज तुम्हारे पूछनेसे मुझे कुछ ख्याल आया है कि अब योग्य अर्द्धाङ्गिणीका लाभ हो तो उचित है । तौभी हे मित्र! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy