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________________ संयोग और वियोग । [२४९ उत्तम कांचकी भीतोंका अनेक चित्र सहित बनवाया गया । काचोंमें नारकियोंके दुःखोंके चित्र व कौन २ पापसे कौन २ दुःख होता है ऐसा नकशा दिया गया था। वेदी चांदीकी सुन्दर रची गई। तीन तरफ भीतोंमें ऐसे कांच जड़े गये थे जिससे एक मंदिरके अनेक मंदिर मालूम होते थे । स्फटिकमणिकी मूल नायक श्री चंद्रप्रभुकी प्रतिमा चांदीके सिंहासन पर अतिशय वीतरागता व ध्यानको प्रगट करनेवाली पौन हाथ ऊंची सुशोभित हुई उनके सिवाय और भी कई छोटे २ स्फटिकके बिम्ब विराजमान किये गये। एक धातुका चौवीसी पट्ट भी विराजमान किया गया । चैत्यालयकी ऐसी मनोहर शोभा थी कि दर्शकको सैकड़ों ध्यानाकार प्रतिबिम्बोंके दर्शन उन कांचोंके निमित्तसे होते थे। इस महलकी तैयारी होकर चैत्यालयकी बड़ी धूमसे व भक्ति व पूजा सहित प्रतिष्ठा की गई । सर्व कुटुम्ब एक साथ एक ही पैलेसमें रहकर धर्म कर्म साधन करने लगा। सेठ माणिकचंदनी बड़े प्रेमसे नित्य प्रछाल व पूजन करने लंगे । स्वाध्यायके लिये कपाटोंमें लिखित व मुद्रित ग्रंथ भी रक्खे तथा एक कपाट ऐसा भी रक्खा कि जो उस समय तक ग्रंथ छपे थे उनकी कई २ प्रतियां भेटमें देने व न्योछावर लेकर देनेको रक्खी गई जिससे स्वाध्यायका प्रचार हो। सेठ माणिकचंदजीका यह कायदा था कि स्वाध्याय करते समय ब बड़े हॉलमें बैठते हए जो कोई दर्शनके लिये आते उनसे धर्मकी बात पूछकर स्वाध्यायका उपदेश देते, तथा पुस्तक लेनेको कहते थे । रात्रिको व्याल करके व समुद्र तटपर घूमनेके बाद तथा चैत्यालयमें दर्शन करके सेठनी सदर जीनेके सामने ही बड़ी कुरसीपर बैठ Jain Education International For Personal & Private Use Only only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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