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२५० ] अध्याय आठवाँ । जाते थे। और दर्शन करने आनेवालों को चाहे धनाढ्य हों चाहे गरीब बड़े प्रेमसे कुरसीपर बिठाकर उनका दुःख सुख पूछते थे । उनको धर्मोन्नति व जात्युन्नतिकी प्रेरणा करते थे।
इस महल और चैत्यालयकी ऐसी प्रख्याति हुई कि बम्बईके लोग इसे एक देखने योग्य वस्तुओंमें गिनने लगे और देशी परदेशी जैनी अजैनी सब बिना रोकटोकके बंगलेमें घूमकर देखने लगे। गुजरात व दक्षिणमें परदेका रिवाज नहीं है केवल ड्योढ़ी पर एक जमादार रहता था जो आते जाते लोगोंको देख लेता था । रात्रिको बंगले में रोशनी ऐसी होती थी मानो दिन ही मौजूद है। चैत्यालयमें शामको प्रेमचंद मोतीचंद बड़ी भक्तिसे आरती पढ़ते और करते थे। रूपाबाई अपने पुत्रके भक्तिभरे शब्द सुनकर प्रफुल्लित होती थी। बम्बईके जैनी अब चौपाटीकी तरफ शामको प्रायः सर्व ही आने लगे और चैत्यालयके दर्शन नित्य प्रति करने लगे। तथा सेठजीसे उपदेश पाकर व वार्तालाप करके परस्पर लाभ लेते देते हुए । चतुरबाईको गर्भ था जिसकी सम्हाल संठ माणिकचदजीन बहुत
की थी । उसके संतानका जन्म उसी बंगले में तारामतीका जन्म । हो जहाँ गर्भ रहा है ऐसा भाव करके गुज०
, कार्तिक मास सं० १९५० तक चतुरबाईनीका जाना चौपाटीके बंगले में नहीं हुआ था जुबिली बागके बंगलेमें ही मिती कार्तिक वदी १ को सेठजीकी पुत्रकी आशाको इसी तरह रखते हुए एक कन्याको जन्म दिया । यह कन्या मी सुन्दरमुख थी। शरीर बड़ा नर्म था। इसकी रक्षा पूरी २ की गई । सेठजीने साधारण रीतिसे जन्मोत्सव किया तथा इसका नाम तारामती
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