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संयोग और वियोग। [२५१ रक्खा । प्रसूतिका समय चले जानेके बाद कन्याको लेकर श्रीमती चतुरबाई चौपाटीके बंगलेमें चली गई और स्वर्गपुरीके समान वहां निवास करने लगीं । यद्यपि मगनमतीकी लग्न हो गई थी पर इसका चित्त पिताजीके पास ही बहुत प्रसन्न रहता था । इस नए बंगलेमें वह मुरतसे आकर महीने दो दो महीने ठहर जाती थी और समुद्र व चौपाटीकी बहारसे संसारिक आनन्द मनाती थी। सेठ पानाचंदनीकी अवस्था सं० १९५० के प्रारंभ में ४५
वपकी थी। यद्यपि इनकी आंतरिक इच्छा सेठ पानाचंदजीकी विवाह करनेकी नहीं थी पर कोई संतानका तृतीय लग्न। लाभ न होनेसे कुटुम्बी जन इनको विवाहका
बहुत ज़ोर दे रहे थे । इन्होंने भी स्वीकार कर लिया । इनका शरीर अभी भी भले प्रकार दृढ़ व उद्योग पूण था। परतापगढ़ राज्य जिला मालवामें इमड़ जातिके एक साधारण स्थितिके धारी सेठ शंकरलाल नंदलालनी थे जिनकी पत्नीका नाम चिमनाबाई था इनके एक कन्या रुक्मीबाई थी जो सीधे मिजाजकी व घरके कामकाज में चतुर व दृढ़ शरीर थी, स्वास्थ्य भी अच्छा था । स्वरूप भी ठीक था। इसीके साथ सेठ पानाचंदजीका विवाह परतापगढ़में हो गया। विवाहमें कोई विशेष धूमधाम नहीं की गई। इसकी अवस्था अनुमान १६ वर्षके थी। सेठ पानाचंद तुर्त कन्या विदा कराके बम्बई लाए और चौपाटी बंगलेमें संसारिक सुखमें भ्रमरके समान लिप्त हो गए। इनको यह आशा थी कि पुत्रका लाभ हो क्योंकि पुत्र विना एक गृहस्थी पुरुषकी शोभा नहीं है।
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