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अध्याय आठवा ।
इधर प्रेमचंद मोतीचंद स्कूलमें मैट्रिकुलेशन तक शिक्षा पाचुके
थे। इनकी द्वितीय भाषा संस्कृत थी । अवस्था सेठ प्रेमचंदजीको १६ वर्षकी हो गई थी। रूपाबाईनीने अच व्यापारकी शिक्षा। ज्यादा स्कूलमें पढ़ाना टोक न समझा और
व्यापारमें झुकाना ही उचित जानकर प्रेमचंदकी आगे पढ़नेकी इच्छा होने पर भी स्कूलसे उटाकर दूकानपर भेजना व मोती पुराना सिखाना शुरू किया। प्रेमचंदका मन बहुत सीधा था तथा अपनी पूच्य माताका परम भक्त था । माताकी आनाका उल्लंघन पाप समझता था। सहर्ष माताकी इच्छानुसार व्यापार सीखने लगा। सेठ माणिकचंदका इसपर बड़ा हेत था क्योंकि प्रेमचंदका मन धार्मिक व परोपकारके कार्यामें अच्छा लगता था । सभामें जाने आने व व्याख्यान सुननेका अच्छा शौक था। कभी २ स्थानीय सभामें कुछ कहनेका भी अभ्यास करने लगा। जैन बोधक मराठी पत्र व मराटीमें छपी जैन पुस्तकोंको अच्छी तरह बांचता था। लौकिक पत्रोंको भी देवता था। जैन जातिकी उन्नति हो इस बातपर पूरा लक्ष्य था। सेठ माणिकचंद पानाचंदका भानना सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद
बराबर इन्हींके साथ रहते व दूकानपर काममें सेठ चुन्नीलाल झवेर- मदद दिया करते थे। चौपाटी बंगले में चंद व्यापारमें यह भी अपनी पत्नी जड़ावबाईके साथ शामिल। एक कमरेमें सुखसे रहने लगे। इनको व्यापारमें
बहुत ध्यान देते हुए व अपने काममें पूर्ण सहकारी जानकर सेठोंने इनका कुछ भाग अपने फर्ममें नियत कर
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