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________________ संयोग और वियोग । लिया और अपने बराबर इनकी प्रतिष्ठा बाजारमें हो ऐसा अवसर इनको दे दिया। चुन्नीलालजी अपने तीनों मामाकी इच्छानुसार व्यापारमें खूब पारश्रम करने लगे। सन् १८९२ के अप्रेल मासमें बम्बईके जैन युनियन कुबमें एक जैनीने "प्रवाससे फायदे'' इस जैनियों में विलायत विषयपर एक निबंध इंग्रेजीमें पढ़ा था फिर जानेकी चर्चा! गुजराती भाषामें कई भाषण हुए थे कि मद्यमांस पदार्थ त्याग करके यदि जैनी समुद्र यात्रा करें तो कोई हनकी बात नहीं है। सन् १८९३में चिकागामें एक बड़ी भारी प्रदर्शनी अमे रिकावालोंने संगठित की थी तथा भारतके अमेरिका प्रदर्शनी में हरएक धर्मवालेको अपने२ धर्मके सिद्धान्तोंको जैन विद्वान भेज- कहनेके लिये बुलाया था। धर्म सम्बन्धी नेकी चर्चा। व्यवस्था करनेके विभागके अधिकारी जान • हेनरी बेरोज थे । इस समय श्वेताम्बरी साधु आत्मारामजी महाराजका नाम बहुत दूर दूर तक प्रसिद्ध था। उनके पास उक्त अमेरिकनका एक पत्र आया जिसकी नकल यह है: "पूज्य महाराज । इस धर्म समाजमें आप खुद जातसे आय सकोगे ? आपका दर्शन होनेसे हमकू बहुत आनन्द होगा जिस जैनधर्मकी अटल वजा आप उड़ाय रहे हो उस धर्मका वर्णन और उपदेशका प्रकाश हरकोई आदमीके दिलपर सुगमतासे पड़े ऐसा एक बाख्यान लिखके यहां भैंजनेकी आप कृपा करोगे ? जो आफ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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