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अध्याय नवाँ ।
नं० २-तत्वार्थसुत्र ४ से ६ अध्याय और पुरुषार्थसिद्धयुपाय
५० श्लोक। नं० ३-तत्वार्थ सूत्र ७ से १० अ० और द्रव्यसंग्रह पूर्ण ।
सन् १९१२ में ३६ इंग्रेजी पढ़नेवालों मेंसे १८ छात्रोंने परीक्षा दी थी जिसमें १५ पास हुए थे। तथा सन १९१४ में ४२ में से २९ ने परीक्षा दी थी १५ पास हुए । इस बोर्डिगमें कसरतशाला, रीडिंगरूम, लाइब्रेरी भी है। छात्रोंको इतना आराम क राहनेका सुभीता है कि सारी परीक्षाओंमें यहांके छात्रोंका बहुत अच्छा फल रहता है।
धर्म शिक्षा लेकर जो छात्र यहांसे निकल कर जाते हैं उन-- मेंमें अधिकांश धार्मिक आचार व उसकी उन्नतिके उपर अपना स्वभाव रखते हुए देखने में आते हैं जिनके कुछ उदाहरण ये हैं-दि० बलवंत बाबाजी बुगटे, मैट्रिकुलेशन पास, पैतृक कृषिकर्म,
दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभामें खास भाग । २-दि० लठे अणाप्पा बाबाजी, एम. ए.; सर्कारी काम, द० म०
सभामें खास भाग तथा Jainizm पुस्तक रची है। ३-खे० मेहता मकनजी जूठा, बी. ए. बारिष्टरी, श्वे. समाजमें
धर्म व जातिकी उन्नलिमें अग्रसर । ४-दि० परीख लल्लुभाई प्रेमानंद, एल. सी.ई., बम्बईमें असिस्टेन्ट
कलेक्टर इन्कटैमक्स, अहमदाबाद, रतलाम बोर्डि० व
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