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समाजकी सच्ची सेवा । [३२३ भाषावाले ३२ छात्र थे। तथा सन् १९१४ में २९ दि० व १३ श्वे० व संस्कृत भाषावाले ३९ थे तथा वर्तमानमें ३७ दि० व १४ श्वे० छात्र हैं व संस्कृत भाषावाले ४९ हैं। दिगम्बरियोंकी अब संख्या बढ़नेका कारण उनमें शिक्षाकी ओर अधिक झुकाव है। श्व० की कमीका कारण एक तो स्थानका अभाव, दूसरे मंदिरपंथी व स्थानकवासियोंके भिन्न २ बोर्डिंग खुल जाना है। जिस समय यह हीराचंद गुमाननी जैन बोर्डिग, खोला गया उस समय बम्बईके हिंदुओंमें सिवाय गोकुलदास तेनपाल बोर्डिंगके और कोई न था।
सन् १९०१ में बोर्डिगमें रहनेवाले ५ छात्रोंको १२) मासिक व परदेशमें पढ़नेवालोंको २६) रु० मासिक छात्रवृत्ति दी गई थी। इनमें सूरत निवासी केशवलाल डाह्याभाई नामका वह छात्र भी है जिसके निमित्त यह बोर्डिग खोला गया । इसे १०) मासिक सहायता दी गई। सन् १९१२ की सालमें बोर्डिंगवासी १७ छात्रोंको अधिकसे अधिक १८) मासिक तक कुल रु० २३४१) सालमें दिया गया। इनमें एक श्वे० छात्र भी शामिल था। तथा परदेशमें पढ़नेवाले १० दिग० छात्रोंको २७०) रू० व अहमदाबाद बो० के छात्रोंको ४८०) ऐसे ७५०) दिये गए।
धार्मिक शिक्षा सन् १९०१ में द्रव्य संग्रह, रत्न करंड श्रावकाचार तथा न्यायदीपिकामें हुई थी जिनमें क्रमसे ६, १३ व १ छात्र परीक्षामें लिखित प्रश्नों द्वारा बैठे थे, सर्व पास हुए । सन् १.९१२ में धर्म शिक्षाके तीन क्लास थे, जिसका क्रम इस भांति था- नं० १-रत्नकरंड श्रावकाचार ७५ श्लोक और तत्वार्थसूत्र
३ अध्याय)
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