________________
९
७२८ ]
अध्याय बारहवां हम ज्यों २ सेठजीके कृत्योंका विचार करते हैं त्यों २
. सेठजीके निरालस्य और शिक्षाप्रमी स्वभावसेठजीका विद्यार्थियोंसे की कोमलता देखकर आश्चर्य होता है । प्रेम और कोल्हापुर कोल्हापुर बोर्डिंगके विद्यार्थियोंने एक विद्यार्थी गमन । सम्मेलन स्थापित कर रक्खा था जिसका
उत्सव ता० २१ अप्रैल १९१३ को बड़े समारोहसे करना विचार कर सांगली, हुबली, शोलापुर व बेलगांव बोर्डिंगों के छात्रोंको व अन्य गांवों की करीब ४०० जैन मंडलीको एकत्रित किया। मि० ए० पी० चौगले, रा० रा० रु तथा विद्यार्थियों के सच्चे पिता सेट माणिकचंदजीको भी बुलाया था। ध्वजा पताकाओंसे सुशोभित करके एक मंडर बांधा गया था । सबेरे ही दर्शन पूनादि नित्य कर्मके पीछे सर्वका दूध चायसे सत्कार किया गया। फिर सर्व विद्यार्थियोंका फोटो लिया गया। सेठनीने अखाड़े का द्वार खोला । कुस्तियोंकी कसरतके साथ २ पटा खेलना, दौड़ना, गेंद फेंकना आदि खेल दिखलाए गए । हरएक खेलमें सर्वोत्तम तीनको इनाम दिये गए । १०॥ बजे प्रोफेसर शिंदेका जादूका खेल हुआ। फिर सर्व मंडलीका विद्यार्थियोंने पक्वान्न मिठाई आदिसे खूब भोजन सत्कार किया। फिर ४ बजे सभा प्रारंभ हुई। अजैन विद्वान् भी पधारे थे । सभापतिका आसन हमारे दानवीर सेठजीको प्रदान किया गया। गानके बाद श्रीयुत् हाल सेठीने रिपोर्ट सुनाई । उसके भीतर कहा कि द० म० जैन समाके स्थापनके पहले इस प्रांतमें शिक्षा प्रचारका प्रयत्न रा० रा० चौगले, हंजे, लट्टे, आवटेने किया था। फिर समा स्थापित
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org