________________
महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७२७ ता. ३ मार्च १९१३को इस संसारसे चल वसी । इसको शिक्षाका
बहुत प्रेम था । मरनेके पहले इसने अपनी एक कन्याका इच्छासे ही १५०००) का दान स्त्री शिक्षा१५०००)का दान । के लिये किया और मातासे कह गई कि
इस रकमसे दि० जैन समानमें स्त्री शिक्षा का प्रचार किया जाय । वास्तवमें दानियोंकी संतान भी दानी होती है। इसके वियोगसे इसकी माता रुक्मणीबाईको तो शोक हुआ ही पर सेठनीको भी भारी दःख हुआ क्योंकि ऐसी शिक्षित सुशील कन्यासे सेठनी भविष्यमें जैन जातिकी उन्नतिकी बहुत कुछ आशा रखते थे । रुक्मणीबाईको अपनी तीसरी संतानपु-त्र ठाकुरभाईको देखकर संतोष हो जाता था । सं० १९६९ में यह १३ वर्षका था
और नित्य स्कूल में पढ़ने जाता था। इसका चित्त सरल व कुछ धर्मपरायण है । सेठ पानाचंदकी कीर्तिको यह विस्तृत करेगा ऐसी आशा रुक्मणीबाई व अन्य कुटुम्बी जनोंको है । पिताके समान आलस्य रहित श्रीमती मगनबाईजीने इन्दौर
छावनी में सेठ गेंदनलाल और भूरीबाई द्वारा श्रीमती मगनबाईजी- निर्मापित नवीन जिन मंदिर बिम्ब प्रतिका उद्योग। प्ठोत्सव पर जाकर ८ दिन तक कई स्त्री सभाएं
____ करके मिथ्यात्वत्याग, शीलवत आदि पर व्याख्यान देकर सैकड़ों स्त्रियोंसे नियम कराए। श्रीमती पार्वतीबाई, गुलाबबाई, हंगामीबाई आदि पढ़ी हुई बहनों के साथ ज्ञान चर्चा करके बहुत लाभ प्राप्त किया, फिर ता. २८-२-१३ को बम्बई लौट आई।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org