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________________ अध्याय बारहवां | बम्बई नगर में पुराना गुजराती दिगम्बर जैन मंदिर है । यहां पर माणिकचंद लाभचंद नामकी जैन पाठशाला चालू की गई थी। उस मंदिर के मुख्य प्रत्रन्धक नेमचंद ने इसका विरोध किया जिसपर ७२६ ] बम्बई गुजराती दि० जैन मंदिर | पत्रों में परस्पर झगड़ा हुआ | मामला अदा लत तक पहुंचा। इसमें सेठजीको उल्झकर कोशिस करनी पड़ी । इससे मंदिरका छः या ७ हजारका भंडार खर्च हो गया। तथा जिन प्रतिपक्षियोंके पास भंडार न था उनका जातीय रुपया खर्च हुआ। अंत में आपस में समाधानी हुई। कोर्टने कुछ नियम बनाके पांच टूष्टी निवत कर दिये जिनमें सेट माणिकचंदजी भी एक हुए । जव सेठ पानाचंदजीका देहान्त हुआ तब आपके अंतिम विवाह से अर्थात् स्वमणीबाईसे तीन संतान सेट पानाचंदजीकी सजीवित थीं, उनमें से लीलावतीका संतान । विवाह परोपकारी, विद्याप्रेमी व उद्योगी जौहरी ठाकुरदास भगवानदास के साथ हो गया जिनके संयोगसे वर्तमान में एक पुत्री है। सं. १९६९ में लीलावती १७ वर्षकी थी । इसी समय दूसरी कन्या रतनबाई जो सं० १९६९ में १५ वर्षकी थी व पढ़ने में बहुत ही चतुर थी, जिसने ६ वी श्रेणी तक चंदाराम गर्ल हाईस्कूल में इंग्रेजी शिक्षण प्राप्त किया था सो यकायक बहुत सख्त बीमार होकर सुरतमें ज‍ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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