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दानवीरका स्वर्गवास ।
शीरोमणी शेठतणी, अंतरमां थाय याद, परमेष्ठी उच्चारे पंच एवी बुद्धि आपजो. कथे हाथीचंद्र बंधु, “स्मारक खोली फंड, नामना अमर करी, कीर्तिने दीपावजो. ११ वियोगी - हाथीचंद माणेकचंद - सोनासण.
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शोकजनक अवसान.
अमूल्य हीरा रत्नने, माणकना भंडार, माणेकचंद्र उड़ी गया, नभ छायो अंधार!
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गुणानुवाद.
पानानी खाणमांथी, माणेक उत्पन्न थया;
माकना यत्ने, बहु रत्नो उभराव्यां छे, पूर्वजनां नामोने, तार्यां धन धामोने; पुण्यमय कामो, पृथ्वीमां पथराव्यां छे. धर्म ध्वजा फरके छे, यश कीर्ति चळके छे; रंक मुख चातक, रसदाने मलकाव्यां छे, तप्तचित ठार्या, बहु दुखीयां उगार्या न;
निर्धननां द्वारो, धन धान्ये छलकाव्यां छे, अनाथालयो, देवालयो अने विद्यालयो;
आनंदारोग्यालयो, बांधनार क्यों गयो ? जनसेवा, देवसेवा, राज्य अने देशसेवा, सेवाना मेवा चखाडनार क्यां गयो ? सभाओ गजावनार, शान्ति रेलावनार,
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