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________________ २८२] अध्याय आठवाँ । १२३४ व्रतोंका हिसाब इस भांति है:अहिंसा महाव्रतके भेद १४ सत्य महाव्रतके भेद ८ अचौर्य व्रतके , ८ ब्रह्मचर्य व्रतके , २० परिग्रहत्याग महाव्रतके, २४ रात्रिभोजन त्यागवतके ,, १ मनवचनकाय गुप्ति ३ ईर्या समिति भाषा समिति , १० एषणा समिति आदान निक्षेपण स० १ प्रतिष्ठापना समिति . १३७ को मन वचन कायसे गुणे ४११ हुए, कृत कारित अनुमोदनासे गुणे १२३३ हुए इसमें अनिच्छा रात्रिभोजन त्याग भेद १ कुल १२३४ हुए। (जैनबोधक मार्च-अप्रेल १८९२) इस तरह १२३४ उपवास पूर्ण करनेपर यह व्रत पूर्ण होता है। इन उपवासोंको जब पूर्ण कर ले तब उद्यापन करे। एक वर्षमें जितने कर सके करे । लगातार करनेका अभिप्राय नहीं है । सो रूपाबाईने इस कठिन प्रतिज्ञाको धारण किया । सेठ माणिकचंदजी गृहस्थके व्रतोंके पालनमें भी बड़े. साव धान थे । अन्यायका धन लेना, असत्य सेठ माणिकचंदका बोलना, कुशील आचरणसे इनको पूर्ण परिग्रहप्रमाण व्रत । घृणा थी। जब यह पालीतानाकी प्रतिष्ठामें गए तब इनको परिग्रहका प्रमाण नहीं था। प्रतिष्ठा होनेके बाद रात्रिको एकान्तमें सेठजी और धर्मचंदनी अपने २ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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