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संयोग और वियोग । २८१ कारकोंने २२००) यहांके ठाकुर साहबको नजरानाके दिये । प्रतिष्ठाकारकोंने अपने प्रणके अनुसार रु० ११०००) श्रीजिन- . मंदिरजीके भंडारमें भी दिया और सर्व खर्चा । उठाया सेठ पानाचन्द माणिकचन्द और नवलचन्दनीने भी रु० २१००) भंडारमें दिये । तीनों भाइयोंने इस प्रतिष्ठाको निर्विघ्न पूरी करनेमें पूर्ण परिश्रम उठाया।
मंदिर प्रतिष्ठाके बाद सेठ माणिकचंदको चिंता हुई कि धर्म
__शालाका काम पूरा होना चाहिये । उसके पालीताना धर्मशा- लिये आपने अनुमान पत्र १२०००) रु. लाका प्रबन्ध । का बांधा जिसमें २५००) का एक बंगला
तथा कुछ कमरे ४००) रु० व कुछ २००) रु० वाले बनने तनवीन किये । यात्रामें आए हुए लोगोंसे बहुत कुछ भरवाए, ४००) आपने दिये और १२०००) का प्रबन्ध कराके काम जारी करनेकी सूचना मुनीम धर्मचंदको की। जो १००००) का कर्ज सेठोंने मंदिर निर्माणके लिये दिया था सो इस प्रतिष्ठाकी आमदसे वसूल हो गया।
सेट प्रेमचंदकी माता अपनी वैधव्य अवस्थामें व्रत उपवास
करनेमें बहुत ही दक्ष थीं। हर समय धर्मरूपाबाईकी १२३४ ध्यानमें अपना काल बिताना यही इसे इष्ट उपवासकी तपस्या। था। सं० १९५१ में बाईने १२३४
बारहसौ चौतीस उपवासके करनेका नियम धारण किया।
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