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५८८ ] अध्याय ग्यारहवां । चलते आए हैं । हमारे और बंधुओंको इनका अनुकरण करना चाहिये । तब प्रमुखने कहा कि जैन कौम व्यापारमें धनी कुशल और बुद्धिशाली होती है ऐसे ही विद्या में भी कुशल होनेका यत्न करना चाहिये। तब लल्लूभाईने कहा कि मैं इस मानके योग्य नहीं हूं। कौमकी सेवा करना हर एकका फर्ज हैं। सम्पूर्ण गुजरातमें हमारे दिगम्बर भाइयोंको विद्यामें अग्रसर करनेवाले हमारी कौमके दानवीर सेठ माणिकचंदजी हैं, और मैं जिस मान पानेका भाग्यशाली आज हुआ हूं वह दानवीर सेठके प्रतापसे ही है। मैं सेठनीका अंतःकरणसे आभारी हूं। ता० ३ मईको श्री महाराज सयाजीराव गायकवाड़ बड़ौदाने
___कोल्हापुर जैन बोर्डिंग और श्राविकाश्रमका महाराज बड़ौदा और निरीक्षण किया । जैन कौमने बहुत सन्मान सेठजी। दिया। प्रोफेसर लटेने बोर्डिग व श्राविकाश्रमका
__ हाल सुनाया, तब महाराजने अपने भाषणमें स्त्रीशिक्षाकी बड़ी आवश्यकता दिखाई व कहा कि जैनियोंको ज्ञान प्रसारार्थ यत्न चालु रखना चाहिये । मैं अपनी प्रनाको शक्तिके अनुसार जो शिक्षण दे रहा हूं उससे मुझे समाधान नहीं वह और बढ़ना चाहिये। जैसे सेठ माणिकचंद पानाचंदजीने इस इमारतको बंधवा दिया है ऐसे ही प्रत्येकको ऐसे कार्यों में -मदद करना चाहिये।
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