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- महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५८९ बम्बई में त्यागी ऐलक पन्नालालजी महाराज जो केवल एक
___ लंगोटी मात्र परिग्रह रखते हैं, भिक्षावृत्तिसे बंबईमें त्यागी पन्नाला- एक दफे आहार करते हैं, शीत उष्ण पवनकी लजीका केशलोंच। परीषह सहते हैं, रात्रिको गमन नहीं करते
हैं, ध्यान स्वाध्यायमें लीन रहते हैं, पधारे । आपके केशोंको अपने ही हाथसे लोच करनेका समय आ गया, तब बंबईवालोंने रथोत्सव किया व माधोवागमें पूजन व सभाएं हुई । बाहरसे भी बहुत लोग आए । मिती वैशाख सुदी १५ बुधवार ता. ५ मई १९०९को सबेरे ८ बजे हजारों नरनारियोंके मध्यमें अपने हाथसे अपने मस्तक, डाढ़ी और मूंछके वालोंको आध घंटे में पद्मासन बैठकर बड़ी शांतिसे उपाड़ डाला । सर्व जन आश्चर्य में भर गए उस समय सबके मनमें वैराग्य आ गया, बहुतोंने पस्त्री त्याग आदिके नियम लिये । त्यागीनीने थोड़ासा उपदेश केशलोंच करनेके पहले किया था। उसके व इस दृश्यक प्रभावसे उपस्थित. मंडली. व खासकर सेठ माणिकचंदनीके भाव चढ़ आए। उसी समय
औषधालयके लिये ८००० ) का चंदा हुआ, जिसमें सेठ. माणिकचंद पानाचन्दनीने भी ५०१) दिये। सेठजीकी कुटुम्बकी स्त्रियोंने १०१) रु. देकर स्त्रियों में ३००) का चंदा कराया। श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणासे श्रीमती बेसरबाई बड़वाहा ने ११००) श्राविकाश्रमके लिये दिये। सेठ माणिकचंदनीने अपने हीराबागके देशी औषधालयका नाम बदलकर ऐलक पन्नालाल
औषधालय रख दिया और वह रकम इसी काममें खर्च होने लगी। यह दवाखाना बंबईमें बहुत प्रसिद्ध हो गया है । वैद्य एक
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