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________________ ५९० ] अध्याय ग्यारहवां । जैनी शोलापुरका पढ़ा हुआ बहुत योग्य है । इससे सैकड़ों गरीबोंको लाभ पहुंच रहा है ! वर्षातमें प्रायः सेठनी बम्बई ही में ठहरे और धर्मध्यानमें लीन रहे । इस वर्ष शीतलप्रसादनीने दशलाक्षणीपर्व बोरमद ग्राममें सेठ चुन्नीलाल प्रेमानंद मंत्री उपरैली कोठी शिखरनी बीस पंथी कोठीकी प्रेरणासे विताया था और वहां १० दिन तक शास्त्रसभामें सूत्रनीके अर्थके साथ २ धर्मोपदेश दिया था। भादोंके कुछ दिन. पीछे ही सेठजी कोल्हापुर गए। वहां ता: ५ सितम्बर ०९ को श्रीमती चतुरबाई कोल्हापुरमें सेठजीका हालमें दक्षिण महाराष्ट जैन समाकी प्रबन्ध गमन । कारिणी सभाकी बैठक सेठजीके सभापतित्वमें हुई, निश्चय हुआ कि कार्तिक अष्टान्हिकामें कोल्हापुर में वार्षिक परिषद की जायव उसके साथ कलाकौशल्य और खेतीकी प्रदर्शनी दिखाई जाय । सभापतिके लिये श्रीयुत ब्रह्मप्या आण्णा तवनप्पवर नियत हुए। सर्व मेम्बरोंने अनेक कार्य बांट लिये । इसी अवसरपर श्री अनंत जिनकी पंचकल्याणक पूना व नवीन मंदिरकी प्रतिष्ठा करना भी निश्चय हुआ जो सेठ भूपालजिरगेने बोर्डिंगके छात्रोंके लाभके लिये निर्मापण कराया था। सेठ भूपालने ३०००) से अधिक मंदिर निर्मापणमें लगाए व ३०००) की कीमतकी जमीन मंदिर खातेको दी जिससे १००) वार्षिककी उत्पन्न हो ।.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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