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महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६९१ आनरेरी नौकरी करनी पड़ती है । ये लोग २ दिन पेरिसमें रहे । फिर ३० घंटे रेलमें चलकर जर्मनीके हेम्बर्ग नारमें ता० १-९-१०को सबेरे पहुंचे । यहांके लोग प्रेमी व उद्यमी थे। यह जर्मनीका द्वितीय भारी नगर व दुनियांके व्यापारी नगरोंमें चौथे नम्बरपर है । यहां व्यापार बहुत भारी है । रंग, व कपड़ों के बड़े २ कारख ने हैं। यहां एक्सचेंज आफिसमें ? ॥ बजे दिनसे २॥ तकमें ७००० व्यापारी और दलाल एक होकर सौदा कर लेते हैं। शेष कान टेलीफोन और पत्रसे होता है। शरदी बहत है। ॥) आनेवाला मार्क सिक्का चलता है । यहांके लोग विवेकी व साफ मनके हैं । ९ लाखकी वस्ती है। कुछ शौकीन भी हैं। अरहरकी दाल विना सब वस्तुएं दूध, शाक आदि मुम्बईके समान मिलता है। वी वैसा सहा नहीं मिलता है । ठंडीके सबब हरएक घरमें अग्निकी अंगीठी जलती है या विजलीसे हवा गर्म को जाती है । ये लोग व्यापारके लिये गए थे सो वहां १ मकान भाड़े लेकर दूकान खोल दो । कुछ दिन व्यापार किया, पर योग्य लाभ न देखकर लौट आये थे।
बोर्डिंगकी तरफसे लल्लूभाई प्रेमानन्दको प्रमुखके हाथसे मानपत्र अर्पण किया गया । इसका जवाब देते हुए परीख लल्लूभाईने कहा कि “ मैं इस मानके लायक नहीं हूं पर इस मानके योग्य सेठ माणिकचंदजी हैं, जिनकी सूचना और सलाहसे मैं कोई भी सेवा व ना सका हूं। प्रमुख ने अपने भाषणमें कहा कि " विद्यार्थियोंको नौकरीकी आशा न रखके स्वतंत्र व्यापारके योग्य हों ऐसी शिक्षा लेनी योग्य है । दोपहरकी सभामें माता रूपाबाई
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