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________________ ६९२ ] अध्याय बारहवां को धर्मशाला बांधनेके लिये धन्यवाद दिया गया। मास्टर दीपचन्दनीके उपदेशसे चैत्यालयमें विद्यार्थियोंने हररोज अष्ट द्रव्यसे पूजनका नियम लिया व ५ वर्ष तक पूनाके द्रव्यका खर्च अहमदाबादके महासुखभाई दामोदरदासने देना स्वीकार किया। श्रीमती मगनबाईजी भी अपने पिताके समान अपने वचनोंकी पावन्दी व वर्तव्य पालनमें दृढ़ हैं। इसी प्रस्तावकी पाबन्दी । सुटेदके कारण अपने मुज़फ्फरनगर में होने वाली महिला परिषदके प्रस्ताव नं० ३ के अनुसार महिला परिषदकी तरफसे २ पेन “जैनमित्र'' में वीर संवत् २४३८ के प्रारंभी बढ़वा दिये और उसमें स्त्रियोंके लेख स्त्रियोपयोगी प्रकट होने लगे। सेठ माणिकचंदजीको सेठ नाथारंगजीके कुटुम्बके एक होनहार परोपकारी रत्न बाचंद पानाचंदका एक समाज सेवी होन- वियोग मिती आसौज वदी १५ सं १९६७ हार रनका के दिन २७ वर्षकी आयुमें ही सुनकर वियोग। चित्तको बहुत उदासीनता हुई। दहीगांव क्षेत्रमें वीसाहूमड़ सभा व महतीसागर उद्योतनी सभा सं० १९६५ में स्थापित कर उसके मंत्रीपनका काम बहुत योग्यतासे किया था । सेठजी इसीके उत्साहके कारण दो दफे दहीगांव गए व शिखरजी में जब पहाड़पर लाट साहब आए थे तब भी आप सेठजीके साथ गए थे। सेठजीके इस उपाय पर कि १० वर्षसे कमकी कन्याकी सगाई कोई न करे, आपने बहुतसे वीसा इमड़ोंके दस्तखत लिये थे व दक्षिणके वीसा हुमड़ोंकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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