________________
महती जातिसेवा तृतीय भाग । डाइरेक्टरी तैयार की थी। धर्मशिक्षाके असरसे मरते समय
१००००) शोलापुरमें बोर्डिंगकी इमारत ११५००) का बनाने व १०००) जैनियोंमें ज्ञान वृद्धि व दान। ५००) बम्बई प्रान्तके गरीब अनाथ
किसानों के लिये दान किया और शांतिसे णमोकारमंत्र जपते हुए प्राग छोड़ा । वास्तवमें यह दानवीरता दानवीर सेठ माणिकचंदजीके ही संसर्गले प्रादुभूत हुई थी। मिती कार्तिक सुदी १४ वीर सं० २४३८ ता० ६ नवम्बर
१९११ को श्रीमती मगनबाईजीने श्राविकामुम्बई श्राविकाश्रम- श्रमका वार्षिकोत्सव गोंडलकी युवराज्ञी श्री का वार्षिकोत्सव। राजकुंवरबाई के सभापतित्वमें बड़े समारोहके
साथ किया था। ललिताबाईजीने रिपोर्ट सुनाई । आश्रमकी श्राविकाओंने पद व भजन, श्लोक कहे । इनाम बांटा गया । प्रमुखाने कहा-“ व्या धर्मके कारण जैन धर्म प्रसिद्ध है इससे वह स्त्रियों व विशेषकर विधवाओं के दुःखोंकी तरफ दुर्लक्ष रक्खेगा यह बात संभव नहीं है । उनको शिक्षा देना यही उनके साथ दया करना है।" __ मिती कार्तिक सुदी १४ कोही काशी स्याद्वाद महाविद्यालय
का वार्षिकोत्व जैनजातिभूषण डिप्टी स्याद्वाद महाविद्याल- चम्पतरायजीके सभापतित्वमें बड़े समायका वार्षिकोत्सव रोहके साथ हुआ। उसमें दानवीर जैनव सेठजीका चित्र कुलभूषण सेठ माणिकचंद हीराउद्घाटन। चंद जे. पी. का अति मनोहर विशाल
चित्रपटका उद्घाटनमहोत्सव उक्त सभापति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org