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लक्ष्मीका उपयोग । [२३३ माता भी बड़े यत्नसे रहकर पालन करने लगी। इन सेठोंके यहां सं० १९३६से ही गाड़ी घोड़ा था। इससे जुबिलीबागसे शहर आनेजानेमें इनको कोई कठिनता नहीं थी । तथा जुबिलीबांगका स्थान टाम्वेके पास ही है । ट्रामके द्वारा कुछ ही मिनटमें चाहे जहां जा सक्ते थे। सेठ माणिकचंदनीका ध्यान चारों तरफ रहता था । व्यापारके
अवसर भी देखा करते थे। पाठकोंको मालूम जमीनका व्यापार । ही है कि इनका खास व्यापार विलायतसे
शुरू हो गया था। ३ वर्ष तक इनका विलायतका व्यापार ऐसा चला कि उसमें इन्होंने दुगने तिगने भी किये
और बहुत रुपया कमाया पर आगे चलकर इतनी उपज नहीं रही। इसका कारण यह हुआ कि जब इन्होंने व्यापार शुरू किया था तबतो यह और साकरचंद लालूभाई दो ही व्यापारी विलायतको मोती भेजने वाले थे। अब कई हो गए तथा विलायत वाले भी आफर बहुत खींच कर देने लगे। जो नए भेजने वाले थे वे थोड़ेसे ही नफेमें माल वेचने लगे । अतएव ३ वर्ष बाद मालमें सवाए व कभी २०) व १५) सैकड़ेसे अधिक लाभ नहीं होता था जिसमें फ्रामजी सन्सका कमीशन व खरचा बहुत पड़ जाता था। संवत १९४५ में सेठ माणिकचंदजीने हीरेके एक प्रसिद्ध मुलाकाती व्यापारी सेठ अबदुल हुसेनके साझे ज़मीनको खरीदने और बेचनेका व्यापार शुरु किया। इसमें भी इन्होंने कई लाख रुपया पैदा किया व बहुतसे मकान व ज़मीन अपने उपयोग व भाड़ा पैदा करनेके लिये अलग रख ली। दो तीन वर्ष तक इसका व्यापार भी खूब चला ।
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