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________________ ३९४ ] अध्याय दशवां । बड़े और एक छोटा था। पर उस समय केवल दो बड़े भाई ही मौजूद थे। अनंतलाल जवाहरातका और सबसे बड़े संतलाल टोपी चिकनका काम करते थे। सबसे छोटा भाई पन्नालाल था जो अपनी १८ वर्षकी आयुमें इस समयके ( या ९ मास पहले ता० १५ मार्च १९०४ को प्लेग रोगसे पीडित हो परलोक सिधारा था। इसीके दो दिन पहले शीतलप्रसादकी स्त्री भी प्लेग रोगसे मरण कर गई थी। यह स्त्री एक वैष्णव अग्रवालकी पुत्री थी पर जिन वर्ममें ऐसी गाढ़ श्रद्धावान थी कि किसी कुदेवादिकको नहीं पूजती यो । माता पिताने कुछ विद्या नहीं पढ़ाई थी। पतिको विद्या पढ़ानेका शोक सो रात्रिको सोनेके पहले आध घंटा अक्षर व पुस्तकज्ञान कराकर सोनेकी आज्ञा मिलती थी।पतिकी कृपासे थोडे ही दिनों में जैन धर्मकी पुस्तक पढ़ने लगी थी। पतिसे गाढ़ प्रेम था। शरीर अस्वस्थ रहा करता था, इसीके चार दिन पहले ता० ९मार्च १९१३को शीतलप्रसादकी माता श्रीमती नारायणदेवी यकायक एक ही दिन प्लेगमें बीमार रहकर परलोक सिधार गई। यह नारायणदेवी साक्षात् देवी ही थीं। इनको आलस्य छू तक नहीं गया था । आप सवेरेसे रात्रि तक परिश्रम करने में ही सुख मानती थीं। शीतलप्रसादके पिताका १ वर्ष पहले देहान्त हो गया था। शीतलप्रसाद उस समय सर्कारी रेलवे हिमाबके दफ्तरमें क्लर्क थे। माता इन्हींके साथ थी। इनको बहुत चाहती थीं। नारायणदेवी रसोई क्रियामें बहुत निपुण थीं। स्वादिष्टसे स्वादिष्ट भोजन बनाना जानती थीं। थोड़े खर्चमें स्नेह भरा भोजन बनाकर अपनी आयु पर्यंत छोटे पुत्रोंको खिलाती रहीं। घरमें सफाई रखने में चतुर थीं । समय बचनेपर लखनऊके चिकनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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