SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९३ व रंगावेजी अच्छी है। पांच वेदिया हैं। बाबू शीतलप्रसादका मूलनायक श्री नेमिनाथ स्वामीकी परिचय। बड़ी ही शांत दो गन ऊंची पद्मासन प्रति बिम्ब मध्य वेदीमें विराजित है । दर्शन करते हुए जी नहीं तृप्त होता है । दूसरी वेदियां क्रमसे श्वत वर्ण चंद्रप्रभु, चौवीसी, श्वेतकापाषाण श्री पार्श्वनाथनी व श्री शांतिनाथनी की ४ हैं। शांतिनाथकी प्रतिबिम्ब प्राचीन है, परम वीतरागता झलकाती है करीब २। हाथ ऊंची पद्मासन है। दर्शन करते २ जी नहीं तृप्त होता है ऐसे ही चौथी वेदीमें श्री पार्श्वनाथजीकी बड़ी ही प्रसन्नमुख आत्मिक आनंद रसको पीती हुई एक भव्य प्रतिबिम्ब है। इसी वेदीके आगे मगनबाई और ललिताबाई दोनों शुद्ध धोए वस्त्र पहने सामग्री लिये हुए बहुत ही ललित उच्चारणके साथ अष्ट द्रव्यसे पूजा कर रही थीं, करीब ९ प्रातःकालका समय था । इन दोनों स्त्रियोंको नित्य श्री जिनेन्द्रकी पूजा करनेका अभ्यास था । जिस समय ये पूजा कर रहीं थी, मंदिरजी में कई श्रावक शास्त्र स्वाध्याय कर रहे थे। यहां पहले कभी किसीने स्त्रियोंको अष्ट द्रव्यसे पूजा करते हुए नहीं देखाथा सो सब आश्चर्यमें डूब रहे थे और सोच रहे थे कि ये कौन हैं, किस देशको स्त्रियां हैं। उन स्वाध्याय करनेवालोंमें एक बाबू शीतलप्रसाद भी थे जो उस समय मंदिरजीके पासवाले मकानमें अपने बड़े भाई लाला संतूमलके कुटुम्बके साथ रहते थे। शीतलप्रसादकी उस समय अवस्था २६ वर्षकी होगी। यह अग्रवाल वंशन गोयल गोत्रीय लाला मक्खनलालके पुत्रोंमेंसे एक थे। दो सीतलप्रसादसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy