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________________ १०६ ] अध्याय तीसरा | कि जो कोई अपाहन दरवाज़े पर आ जाता था उसको मुट्ठीभर अन्न जरूर दे आती थी। अच्छी भावनाओंका असर भी अच्छा ही हुआ करता है | विजलीबाई के धर्ममें झुकते हुए भावोंका असर उस गर्भ स्थित बालक पर भी पड़ता था । जगतमें निमित्त नैमित्तिक सम्बन्धसे अनेक अवस्थाएं हो जाती हैं । पूर्वबन्ध जड़ क्रय कर्मोंका असर संसारी आत्मापर पड़ता है । और संसारी आत्मा के भावोंसे पुलका परिणमन होता है। बाहरी पदार्थ भी भावों में असर डालते हैं । 1 सुयोग्य सम्बन्धों में प्राणोंकी वृद्धि करते हुए नौ (९) मास वीत गए और दिवालीकी निकटताका समय सेठ माणिकचन्दका आ गया। इस कारण उच्च कुली सर्व ही जन्म सं० अपने स्थानोंकी सफाई तथा लीपापोती कराने लगे । साह हीराचन्दने भी अपने मकानकी १९०८। शुद्धि व पुताई कराई । कार्तिक वदी १३( आसोज वदी १३ गुज० ) का दिन आ पहुँचा । इसको धनतेरस भी कहते हैं । बहुत से लोग आजकल घरमें कुछ नए बरतन भी खरीद कर लाते हैं । यह दिन एक मंगल दिवस माना जाता है । इसी दिन प्रातःकालके शुभ मुहूर्त्त मैं विजलीबाईने पुत्ररत्नका जन्म दिया । इस समय भी पुत्रका मुख देखकर माता पिताको जो आनन्द हुआ वह वचन अगोचर है । जैसे पाना चंदके मुखपर तेज झलकता था ऐसा ही इस पुत्रके मुख से प्रगट होता था । साह हीराचंद ने इस पुत्रका माणिकचन्द नाम रक्खा और यथायोग्य श्री जिनमंदिरजी में पूजा कराई, कुछ दान बाँटा तथा कुटुम्बियोंको तृप्त किया । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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