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________________ उच्च कुलमें जन्म । [ १०५ गरीबों को तृप्त किया। विजलीबाईका चित्त बड़ा कोमल था। जब वह किसी गुणकी बात सुनती थी तो उसका दिल भर आता था । उसके मन में यह आया कि कि कब मैं इस योग्य होऊँ कि खूब दान धर्म करूँ और सर्वको तृप्त करूँ । विचारते २ उसने हीराचंदजी से कहा कि देखो हमारे भी कभी ऐसे पुण्यका उदय आवे जो हमसे भी खूब दान धर्ममें द्रव्य खर्च किया जावे। साह हीराचंदने कहा कि हम तो इतने भाग्यशाली नहीं है क्योंकि इतने दिन व्यापार करते बीते कभी हम अपने खर्च अधिक नहीं कमा सके । ज्यों त्यों कर हेमकुमारीका विवाह किया था उसके पीछेसे व्यापार साधारण ही चला । हाँ, जिस वर्ष पानाचंद का जन्म हुआ था उस वर्ष व्यापारमें अच्छी पैदा की थी । अब तो साधारण ही लाभ हो रहा है । परंतु यह मुझे आशा है कि पानाचंद अवश्य भाग्यशाली होगा और द्रव्य कमाएगा । उस समय यदि उसका परिणाम दान धर्म में होगा तो वह भी अपने दानकी सुगंधको उसी तरह विस्तारे-गा जैसे आज गायकवाडका यश हो रहा है । इस तरह परस्पर वार्तालाप करते पति पत्नी उस रात्रिको अति प्रेमसे अपने खास शयनालय में सोए । उसी रात्रिको विजलीबाई गर्भवती हुई । विजलीबाईका मन रात्रभर दानकी उमंगमें भीज रहा था । यह वही रात्रि है जिसमें इस पुस्तक के नायक प्रसिद्ध सेठ माणिकचंद - का जीव विजलीबाईके गर्भमें आया, जिस आत्माने गर्भस्थान में 'निवास करते ही उस स्थानको दानधर्मकी वासनासे वासित पाया । ज्यों २ गर्भ बढ़ाता था विजलीबाईका मन दानके लिये उमंगता था । साधारण स्थितिके कारण इतना तो वह अवश्य करती थी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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