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महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५६१ सभामें बाबू देवकुमारजी सभापतिक नाम ए० एच० बी० अंडर
__ . सेक्रेटरी गवर्नमेंट बंगालका पत्र ता० २४ लाट साहबका विरुद्ध मार्चका इस आशयका आया था कि बीहक्म और जैन स- चकी टेकरी या रास्ता छोड़ दिया जाय तथा माजका जोश। इसे भी जैनी लोग अच्छे दाम देकर सदाके
लिये खरीद लें या पट्टेपर ले लें । पश्चिमीय पहाड़ यूरुपियन और पूर्वीय देशियोंके बंगलोंके लिये दिया जाय तथा नीमियाघाटसे नई वास्ती तक नई खड़क बने । तथा अंतमें लिखा था कि यह भारत सारका हुक्म है, सर्व जैनियों में प्रसिद्ध किया जाय तथा और जो कुछ कहना हो वह कोर्ट आफ वाइससे शीघ्र कहा जाय । इस पत्रको सुनते ही सेठ माणिकचंदनी बहुत ही उदाप्त हो गए तथा हजारों आदमी असंतोषसे घबड़ा गए । तब महासभाने प्रस्ताव नं० १४ इस आशयका पास किया कि इप्स हुक्मसे सर्व जैन जातिके हृदयपर बहुत चोट लगी है। सर्कारने इस कार्रवाईसे व्यर्थ असन्तोष फैलाया है। जो असन्तोष है व होगा उसे महाप्तमा रोक नहीं सक्ती क्योंकि यह पर्वत अनादि कालसे पूज्य और पवित्र है । इसपर ऐमा कृत्य किसी मुसल्मान राजाने भी नहीं किग तथा इस प्रस्तावकी नकल इंडिया गवर्नमेन्ट व स्टेट सेक्रेटरी लंडनको भेजी गई तथा जैन जातिसे प्रेरणा की गई कि वह जन धन और सहानुभूतिने पूर्ण उद्योग करे । पंडित गोपालदास व पं. धन्नालालने इस प्रस्तावका हाल सर्वको समझाकर पास कराया । प्रस्ताव नं. १६ इस विषयका हुआ कि महासमाके भंडार में जैनी मात्रसे प्रति मास एक पैना
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