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अध्याय ग्यारहवां ।
दमोह जिलेमें कुंडलपुर अतिशयक्षेत्र है, जहां प्रति वर्ष चैत्र में मेला हुआ करता है । इस वर्ष मा० दि० जैन महासभाका बारहवां अधिवेशन बड़े समारोह के साथ ता० २८ मार्च ३१ त
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कुंडलपुरकी महासभा सेठजी ।
बाबू देवकुमारजी जमीनदार आराके सभापतित्वमें हुआ । आजकल ऐसा भारी समारोह किसी जल्सेमें नहीं हुआ था । इस मेले में १२००० जैन व २८०० अजैन एकत्र हुए थे । दमोहकी स्वागतकारिणी समाने व उत्साही स्वयंसेवकों ने बहुत ही प्रशंसनीय प्रबन्ध किया था। मंडप भी बहुत बड़ा रचा गया था । प्रायः सर्व प्रान्तोंके प्रतिष्ठित दि० जैनी उपस्थित थे । सेठ माणिकचंदजी फीरोजाबादसे शोलापुरवाले व शीतलप्रसादजी के साथ ता० २६ की शामको दमोह आए और उसी समय कुंडलपुरको रवाना हुए। बैठक ता० २८ से शुरू हुई। श्रीमान सेठ मोहनलाल खुरईने स्वागतका भाषण सभापतिको हैसियत से पढ़ा | फिर सेठ माणिकचंदजीके पेश करने और सेठ पूर - णसाह 'सिवनी के समर्थन से बाबू देवकुमारने सभापतिके आसनको ग्रहण किया । आपने अपना विद्वत्तापूर्ण भाषण करके इतनी शांति से प्रस्ताव सब्जेक्ट कमेटीमें ठीक कराके आमसभा में पास किये कि विघ्न आनेपर भी कोई अंतराय नहीं पड़ा। वेश्यानृत्य, बालविवाह, वृद्धविवाह आदि कुरीति निषेधके प्रस्तावका समर्थन सेठ माणिकचंदजी और इनके मित्र धर्मचंदजी मुनीम पालीतानावालोंने किया था । उपयोगी प्रस्तावों में एक जाति व धर्मकी सेवा करनेवालोंको पद दिये जानेका हुआ। दूसरा श्री सम्मेदशिखरजी सम्बन्धी हुआ ।
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