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५६२ ] .. अध्याय ग्यारहवां । वसूल किया जावे । प्र० नं० २० में बाबू देवकुमारजी महासभाके. सभापति नियत हुए। प्रं० नं० २२ में महाविद्यालय सहारनपुरसे काशी बदला गया । श्रीमान् पंडित गोपालदासनीका पुरुषार्थ पर, देशभक्त खापर्डे महाशयका भारतकी दशा पर बहुत प्रभावशाली व्याख्यान हुआ, बुन्देलखड प्रांतिक सभाकी स्थापना हुई। श्रीमती पावतीबाई, कंकुबाई, मगनबाईजी आदि पही हुई बहनोंने स्त्रियोंको अनेक विषयोंपर उपदेश दिया । मगनबाईजीने २००० भाषाप्रवेशकी पुस्तके स्त्रियोंको बांटी और पढ़नेकी प्रेरणा की। दमोहमें कन्याशालाके लिये २२६) रु० वार्षिकका चंदा कराया । इसी मेले में मगनबाईजीको बेसरबाई बड़वाहाका परिचय हुआ जिमने स्त्रीसमानमें विद्याप्रचारार्थ अपनी लक्ष्मीका अच्छा भाग खर्च करना प्रारंभ किया है । यद्यपि इस सभामें कोई भारी चंदा नहीं हो सका तथापि बुंदेलखन्डके भाइयोंपर अपनी उन्नतिको कमर कसनेके लिये बहुत उत्तेजना हुई।
सेठजी भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका जल्मा करना चाहते थे पर नियमावलीके अनुकूल एक मेम्बरकी कमी होनेसे जल्ला न हो सका। कुंडलपुरमें सेठजीके चित्तको श्री सम्मेदशीखरजी सम्बन्धी
सर्कारी आज्ञासे बहुत बड़ा कष्ट हुआ । सेठजीको शीखरजी- यह मर्कारी हुक्म कैसे टले और परम पवित्र की चिन्ता। पर्वतकी रक्षा हो इस विचार में दिन रात ली
न हो गए। इस मेले में १२००० जैनियोंके भारी क्षोभ और उनके क्लेशित चित्तसे निकले हुए वचनोंको सुनकर
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