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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४५३ स्त्रीशिक्षाके प्रचारार्थ जो श्रीमती मगनबाईजी पत्रव्यवहार
कर रहीं थी उसके फलसे शोलापुरके सेठ मगनबाईजीके उ- हीराचन्द नेमचन्द आनरेरी मजिष्ट्रेटकी द्योगका फल। सुपुत्री श्रीमती कंकुबाई भी नासमाजकी
सेवामें दत्तचित्त हुई और सप्त तत्त्वपर एक लेख भेजा जो जैनगज़ट अंक १७ ता० १ मई १९०६ में मुद्रित है। जब सेठनी जबलपुर बोर्डिंगकी बात पक्की करने आए थे
___ उस समय बोर्डिंगके लिये बहुतसे मकानोंको जबलपुर में बोर्डिंगका तलास किया। जैन बिरादरी में सिंहई महूंत । सद्भूलालजी धर्मात्मा व प्रेमी भाई थे।
आपने सेठनीको अपना नया बनवाया हुआ मकान दिखलाया । इसमें अभी प्रवेश भी नहीं हुआ था। सेठजीको २५ बालकोंके रहने योग्य साफ सुधरा देखकर पसन्द आ गया। तब सिंहईजीने कहा कि एक वर्षके लिये विना किराए लिये बोर्डिंगके लिये मैं यह मकान देता हूं, उसीमें महूत्त करना निश्चित हो गया था । नरसिंहपुरमें पन्नालाल मास्टर एक धर्मबुद्धि भाई था इसका हाल मुन्नालाल राजकुमार द्वारा मालूम हुआ था सो इसको सेठजीने बुलाकर सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत कर दिया तथा मेज, कुर्सी बर्तन आदि सामान मंगानेकी सर्व सूची कर दी थी तथा शीतलप्रसादनी द्वारा एक नियमावली भी बनाकर दे दी थी। ताः ११ अप्रैलकी समामें यह नियमावली पास कराली गई थी और महतके लिये सर्व प्रबन्ध हो रहा था। कुछ बालक भी बुलाये गए थे।
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