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४५४ ] अध्याय दशवाँ इतनेमें महूर्त्तका दिन निकट आनेसे सेठ माणिकचंदजी शीतलप्रसादजी और श्रीमती मगनबाईजीके साथ ता: २४ अप्रैलको जबलपुर पधारे और जल्सेका बहुत उत्तम प्रबन्ध कराया । नगरके प्रतिष्ठित भाइयोंको निमंत्रण भेजा व कई जगह आप भी बुलाने गए। राजा गोकुलदासजी रईसके हाथसे बोर्डिंग खुले ऐसा निश्चय किया।
मिती बैशाख सुदी ३ अर्थात् अक्षयतृतीयाके दिन ता. २६ अप्रैल० ६ को सबेरे ही श्रीसरस्वती पूजन करके बजे मंगल कलशको लिये हुए सर्व मंडली गाजे बाजेके साथ लाडेगनकी धर्मशालासे बोर्डिंगके मकानमें पधारी और वहां मंगल कलश पधराया । फिर लार्डगनकी पाठशालाके मकानमें आए। वहां सर्व जैन अजैन १००० मनुष्य एकत्र हुए । नगरके बड़े२ सभी प्रतिष्ठित पुरुष आए थे। राजा गोकुलदासजीने सभापतिका आसन ग्रहण किया। सभापतिने बोर्डिगकी आवश्यक्ता बताते हुए सेठ माणिकचंदजीकी उत्तेजना और कष्टकी सराहना की। फिर बाबू दयालचंद मंत्रीन नियमावली, कमेटीके मेम्बर व प्रवेशार्थ आए हुए छात्रोंके ग्रामादि बताए। फिर शीतलप्रसादनीने बोर्डिंगके लाभपर एक मनोहर व्याख्यान दिया । इसका समर्थन व्यवहारी रघुवीरप्रसादजी, पं० काशीप्रसाद चौधरी, पंडित गिरधारीलाल पेन्शनर तथा रायबहादुर विहारीलाल खजांची भार्गव बेंकने किया। आपने कहा कि भार्गों में ६ बोर्डिंग हैं और सबसे पहले आगरामें खुला था। रायसाहब मुन्नालाल अकौन्टेन्टने सर्वको धन्यवाद दिया। फिर सर्व मंडली बोर्डिगके मकानको पधारी। राजा साहबने मकानका ताला खोला
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