SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयोग और वियोग | [ २९१ और अत्र अधिक सूरतमें ही रहने लगीं । धीरे २ धार्मिक रुचि घट गई, संसारिक रुचि वह गई । पुस्तक देखनेकी भी याद न रही सो कायदे की बात है । जिस विषयका संस्कार अधिक रहता है वही पक्का हो जाता है और वह पिछले असरको धो डाला। है । ता० १७ मई सन् • १८९६ को जैन यूनियन कुत्र बम्बई में पंडित गोपालदासजीका "अष्टकर्म" पर व्याख्यान हुआ । इसमें सेठ माणिकचंदजी आदि दिगम्बरी, वीरचंद राघवजी, फतेहचंद कपूरचंद लालन, हीरजीभाई आदि श्वेताम्बरी भाई मौजूद थे । व्या ख्यान बहुत ही युक्ति पूर्ण और विद्वतापूर्ण हुआ । वीरचंद राघवजी व हीरजीने व्याख्यानकी प्रशंसा में धन्यवाद प्रगट किया । सभाके पीछे राघवजी और पं० गोपालदासका परस्पर वार्तालाप होनेसे दोनों विद्वानोंको बहुत आनन्द हुआ । पं० गोपालदासका व्याख्यान व वीरचंद राघवजीका परिचय | श्वेताम्बर जैन समाजने वीरचंद राघवजी के कार्यको इस कदर सराहना दी कि उनके चितमें फिर वीरचंदजीका पुनः अमेरिका जानेका विवार हुआ और सन् विदेश गमन । १८९६ में ही अपने स्त्री बच्चों सहित पं० फतेहचंद कपूरचंद लालनके साथ अमेरिका रवाना हो गए। खेद तो इस बात का है कि ऐसा फल देखकर भी किसी दिगम्बर जैन विद्वानको भेजने का प्रबन्ध दिगम्बर जैन समाजने नहीं किया और न कोई दिसम्बर जैन ग्रेजुएट For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy