________________
२९० ]
अध्याय आठवाँ।
मगनबाईनीका विवाह सूरतमें जिस कुम्टुबमें हुआ था वे
यद्यपि प्रतिष्ठित और धनाढ्य थे पर एक मगनवाईजीको बहुत साधारण बुद्धि और संकुचित हृदयके पुत्रीका जन्म। थे। सास व पति दोनों यही चाहते थे कि
__ यह रात्रि दिन घरका काम काज किया करे, सीना परोना करे, अनाज फटके दले । मगनबाईजीको पुस्तक बांचने व कुछ धर्म ग्रंथ देखनेका शौक था परन्तु सास व पतिके भयसे इनका धर्म व अन्य पुस्तकोंका देखना, लिखना, पढ़ना बिलकुल बन्द हो गया था केवल प्रतिदिन चंद्रप्रमु स्वामीके मंदिरके दर्शन करना व जाप देना इतनी ही धर्म क्रिया होती थी। यह मंदिर उनके घरके निकट ही है। यदि कदाचित् भूलसे कभी कोई पुस्तक हाथमे लेती व सास ससुर देख लेते तो बढ़त ही क्रोधित होते थे । साधारण संसारिक प्राणीकी तरह रहते हुए इस कन्याका चित्त भीतरसे प्रफुल्लित नहीं रहता था। जो अपने पिताकी सुहवतमें बैठती, उनकी बातें सुनती, अनेक समाचार पत्र व पुस्तकें वांचती व धर्म ग्रंथकी भी स्वाध्याय करती उसका मन केवल घरके धन्धोंमें कैसे ठीक रह सक्ता था ? इससे मगनबाईजी थोड़े दिन यहाँ रहकर पिता द्वारा बम्बई बुला ली जाती थी। वहां चित्त प्रसन्न रहता पर पतिसे इसको प्रेम, यह पतिमें अनुरक्त व उसकी भक्त सो बम्बई ज्यादा न ठहरकर सूरत चली आती। खेमचंद
और मगनबाईको सं० १९५२में एक पुत्रीका लाभ हुआ। खेमचंदकी माता व पिताको पौत्रीके लाभसे बहुत हर्ष हुआ। मगनबाईजी चंद्रमुखी समान सुन्दर पुत्रीको प्राप्त कर प्रेमसे पालने लगीं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org