SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ४९५ पहले २ जब गाड़ी आती तब उसीमें सबके साथ बैठकर चौपाटी जाते और शामसे पहले २ व्यालू करके पैदल समुद्र तटपर टहलने जाते थे । वहांसे आकर चैत्यालय के दर्शन व जाप कर व कभी स्वाध्याय कर दीवानखाने में ऐसी जगह बैठते थे जो जीनेके सामने है जिससे हरएक दरवाजेसे आता जाता सेठजीको दिखता था और सेठजी उनको देखते थे । इस मनोहर चौपाटी चैत्यालयके दर्शनको बहुत मनुष्य आते थे, उन सबको सेठजी यदि वे स्वयं न आएं तो बुलाकर कुर्सियों पर बिठाते थे, उनके धर्मकी, सुख दुःखकी बात पूछते थे व यदि कोई धार्मिक काम हुआ तो उसमें यथाशक्ति मदद देने को तय्यार रहते थे । रात्रिके १० व १० ॥ तक इस तरह बिताकर रात्रिको दूग्धपान करके शयनालय में जाते थे । सबेरे अति ही सबेरे उठकर फिर नित्य क्रियामें लग जाते थे । आपकी यह इच्छा थी कि जहां २ मुख्य प्रान्तिक कालेज और उनके आसपास दि० जैनी हैं वहां एक २ बोर्डिंग अवश्य स्थापित हो जावे जिससे इंग्रेजी पढ़े छात्र धर्मज्ञान व धार्मिक चारित्र से विमुख न हों। सेठजीको यह भी विश्वास था कि यदि कोई ग्रेजुएट धर्मको जान जायगा तो वह अपने हित के सिवाय अपने लेख व वचनोंसे बहुतों का हित कर सकेगा । जबलपुर बोर्डिग के स्थापन के बाद व उसको चलते हुए देखकर आपने यह संकल्प किया कि लाहौर, अलाहाबाद तथा आगरा में भी बोर्डिंग होना चा हिये । शीतलप्रसादजी सेठजीके साथ ही दूकानपर बैठते थे और कभी २ घंटा दो घंटे के लिये बाजार चले जाते थे । शीतलप्रसादजीको मालूम था कि इन बोर्डिंगों के स्थापन कराने के लिये किन से पत्रव्यवहार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy