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अध्याय बारहवां ।
ट्रष्ट डीडमें नियत किया कि इस रकमका उपयोग दिगम्बर जैन विद्यार्थियों के विद्याप्रचार ही में हो तथा जमीनपर विद्यार्थियों के लाभार्थ व धर्म सम्बन्धी इमारतके सिवाय और कोई इमारत न बने तथा सब छात्रोंको दिगम्बर जैनधर्मका शिक्षण अवश्य लेना पड़ेगा । यह ट्रष्ट डीड सेठ माणिकचंद हीराचंदके हस्ताक्षरसे "प्रगति आणि जिनविजय" पत्र ता. ९ नवम्बर १९१३में प्रगट. हो गया है । धन्य है सेठजीकी दूरदर्शिता ।। ता. १५ नवम्बर १९१३को सम्पूर्ण जैनममानके सबसे
प्रथम I. C. S. कलेक्टरकी परीक्षामें सेठजी द्वारा विद्वान्- उत्तीर्ण होकर लाहौर निवासी लाला का सन्मान मनोहरलाल दिगम्बर जैनके सुपुत्र बाबू
रामलाल डबल एम.ए. विलायतसे जहाजपर बम्बई बंदरपर पधारे । सेठनी विद्याप्रेमके वश होकर उनके पिता व अन्य महाशयोंके साथ बंदरपर गए । हार तोरासे भले प्रकार स्वागत करके रामचन्द्रनीको गुलालबाड़ीके दिगम्बर जैन मंदिरजीके दर्शन कराकर हीराबाग धर्मशालामें लाकर भले प्रकार ठहराया व सन्मान किया । विद्यार्थियोंसे सेठनीका प्रेम स्वाभाविक होता था । सांगलीनिवासी सेठ देवचंद सांकलचंदने ५०००) मृत्युके
पहले धर्मार्थ दिये व यहींके एक जैन व्यापारी सेठजीके दानका रा. रा. बालगौंडानखगौंडा पाटीलने सांगलीके अनुकरण । बोर्डिगको अपने १०००) की बीमेकी
रकम दे डाली तथा शोलापुरके प्रसिद्ध सेठ हरीभाई देवकरण वाले सेठ बालचन्द रामचन्दकी माता श्रीमती
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