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________________ दानवीरका स्वर्गवास । [७६१ उस धनको दिल खोलकर उत्तम कामों में खर्च किया और अपने पीछे महान् भंडार छोड़ गए । आजके दिन भी सेठजी द्वारा स्थापित 'माणिकचन्द पानाचन्द ' नामका फर्म जौहरियोंमें सर्वसे अधिक महत्त्व व नामांकितताको धारण कर रहा है जिसका . ताजा प्रमाण यह है कि इसी सन् १९१६ में स्पेशी बैंकके मोतीके स्टाकको एक मुष्ट १५ लाखमें खरीद कर लिया। बम्बईमें और किसी जौहरीकी हिम्मत नहीं हुई जो ऐसे भारी विकट यूरोपियन युद्धके समय इतनी रकमके सौदेको एक साथ कर सके । यह स्थिति न्यायोपाजित धन ही की होती है। जो धन अन्यायसे इसरोंको कष्ट देकर पैदा किया जाता है वह प्रायः बहतकाल नहीं टिकता है। नीतिकारोंने कहा है: अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते त्वेकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति ॥ १ ॥ अर्थात् अन्यायसे पैदा किया हुआ धन १० वर्ष तक रहता है और ग्यारहवां वर्ष प्राप्त होने पर वह मूल रहित नष्ट हो जाता है । बहुतसी कोठियं कई २ दफे दिवाला निकालकर फिर फिर स्थापित होती हैं। पर सेठ माणिकचंद पानाचंदके फर्मको संवत् १९२७ से आजतक व्यापार करते हुए कभी भी इस कलंकके लगनेका अवसर नहीं प्राप्त हुआ। सेठ माणिकचन्दनी वास्तवमें सोती हुई दिगम्बर जैन समानको जागृत करनेके लिये एक महान् पुरुष ही जन्मे थे। उत्साही और उद्योगी सेठनीने जैनियोंको निम्नलिखित उन्नतियोंके मार्गमें डाल कर चिरस्मरणीय उपकार कर दिया है: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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