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________________ सन्तति लाभ । [ १७१ नाचत भविजन सनन सनन सन सनन सन नाय हो ॥ ५॥ मं० तननतनन तनतनन ननननननन तान होत सुखदाय हो । छमछमछमछमछमछमछमछम घुधरू नाद कराय हो ॥ ६ ॥ मं० साग्रदिसाग्रदिसंसाग्रदिसायदि नह चलत सारंगी घाय हो। . दम दम दम दम दम दम दम दम होत मृदंग स्वराय हो ॥ ७ ॥ मं० घनन घनन घन घनन घंट घना घनकाय हो । रिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरि रूषभश्वर सुखदाय हो।८। मं० ससससससससससससससससर्ज स्वर चलताय हो । गगगगगगगगगगगगगगगग गंधारो स्वर गाय हो ॥९॥ मं० पपपपपपपपपपपपपपपप पंचम नाद कराय हो। मममममममममममममममम मध्यम स्वर सरराय हो ॥१०॥ मं० धधधधधधधधधधधधधधधध धैवेत स्वर सुरराय हो । निनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनि निहोत निस्वाद सुखाय हो ॥ ११ ॥ मं० ऐसे गावत और बनावत नरनारी चितलाय हो। श्रीजिनचलत पालखीमें जहां नर तिर्यंच दुतरफाय हो॥१२॥ मं० फिरी श्रीजिनको उत्सव सजूत मंडपमें पधराय हो । करि अभिषेक करि फिरी पूजन महाचंद्र चितलाय हो ॥१३॥ मं० सप्तस्वर संजूत करी पूजा दिन पंद्रहा तक ताय हो। बदि दुतियासनीवारे पूजन पुरण करी सुख पाय हो ॥१४॥ मं० देश देशके नात्री आये मंडल जिन दरसाय हो। पूजन करी करि श्री जीनवरको सब हर्षे मनमाहि हो ॥१५॥ मं०. श्री जीन प्रभावनां ठाईम महाचंद्र बुधराय हो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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