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________________ गुजरात देशके सरत शहरका दिग्दर्शन। [ ३३ ५२ ,, हरिचन्द्र ६९ ,, ललितकीर्ति ८६ ,, गुणकीर्ति ५३ ,, भावनन्दी ७० ,, केशवचन्द्र ८७ ,, वादिभूषण ५४ ,, सुरेन्द्रकीर्ति ७१ ,, चारुकीर्ति ८८ ,, रामकीर्ति ५५ ,, विद्याचन्द्र ७२ ,, अभयकीर्ति ८९ ,, पद्मनन्दी ५६ ,, सूरचन्द्र ७३ ,, वसन्तकीर्ति ९० , देवेन्द्रकीर्ति ,, माघनन्दी ७४ ,, विशालकीर्ति ९१ ,, क्षेमकीर्ति ५८ ,, ....नन्दी ७५ श्रीशुभकीर्ति ९२ , * : ५९ ,, गंगनन्दी ७६ ,, धर्मचन्द्र ९३ ,, नरेन्द्रकीर्ति ६० , हेमकीर्ति ७७ , रतनचन्द्र ,, विजयकीर्ति ६१, चारुकीर्ति ७८ ,, प्रभाचन्द्र ९५ ,, नमिचंद्र ६२ ,, मेरुकीर्ति ७९ ., पद्मनन्दी ९६ ,, रामकीर्ति ६३ ,, नाभिकीर्ति ८० ., सकलकीर्ति ९७ ,, यशःकीर्ति ६४ ,, नरेन्द्रकीर्ति ८१ ,, भुवनकीर्ति ९८ ,, सुरेन्द्रकीर्ति ६५ ,, चन्द्रकीर्ति ८२ ,, ज्ञानभूषण . ९९ , रामकीर्ति ६६ ,, पद्मकीर्ति ८३ ,, विजयकीति १०१ ,, विजयकीर्ति* . १०० ,, कनककीर्ति ६७ ,, वर्द्धमान ८४ ,, शुभचन्द्र ("दिगम्बरजैन, ६८ ,, अकलंक ८५ , सुमतिकीर्ति वर्ष ४ अंक ७) परकी पट्टावलीमें नं० ८३ श्रीविजयकीर्तिदेव सं० १९६८ में मौजूद थे तथा नं० ८० श्रीसकलकीर्ति शिष्यपरम्परामें थे। इसका प्रामाणिक लेख बड़ौदा नवी पोलक चैत्यालयमें विराजित श्री * ये आजकल मौजूद है, परन्तु सर्व सम्मतिसे गद्दीपर नहीं बैठे हैं इसलिये बहुतसे लोग इनको नहीं मानते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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