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________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३८१ तब सेठ माणिकचंदजीने १००१) दिये तथा इसके प्रबन्धके लिये एक कमेटी ७ महाशयोंकी बनी । सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरी बम्बई, गांधी रामचंद नाथा बम्बई, दोशी हीराचंद नेमचंद शोलापुर, गांधी वालचंद रामचंद शोलापुर, शा. हीराचंद प्रेमचंद परंढा, सेठ नानचंद वालचंद धाराशिव, सेठ रावजी सखाराम भूम ! यह सड़क जहां तक मालूम है अब तक बनी नहीं है। नवीबाईके संयोगसे सेठ माणिकचन्दको १॥ वर्षके अनुमान हुआ पुनमचंद नामके एक पुत्ररत्नका लाभ सेठजीको फिर भी हआ था इससे सेठजीको बहुत संतोष पुत्रवियोगका दुःख हुआ था। परंतु आप बोरसदसे बम्बई आए कि व १०००) का पुत्रको बिमार पाया। उसकी औषधिका दान । प्रबन्ध बहुत कुछ किया पर वह जीव उच्च गोत्री होनेपर भी अल्पायु था सो सेठजी और उसकी माताको यकायक शोकसागरमें डुबाकर ता० २८ अगस्तकी संध्याको शरीर छोड़ चल वसा । सेठनीको रंज तो बहुत हुआ पर धैर्य और ज्ञान तथा अनुभवने यही शिक्षा दी कि शोक करना वृथा है। कौन पुत्र और कौन पिता ? यह सब माननेका रिस्ता है। जिसका मेरेसे भला हो वही मेरा पुत्र है । आप अपने जातिके बालकोंको ही अपना पुत्र जानते थे और जहां तहां उनमें धार्मिक और लौकिक ज्ञानके प्रचारार्थ तन मन धनसे मदद करते रहते थे। आपसे जब कभी कोई पुत्रकी बात करता आप यही उत्तर देते कि मेरे जातीय बालक ही सब मेरे पुत्र हैं। मुझे पुत्रकी कामना नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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